Friday, 24 November 2017

‘ॐ’ ओंकार क्या है ?

‘ॐ’  ओंकार क्या है ?

ओंकार का अर्थ है, जिस दिन व्यक्ति अपने को विश्व के साथ एक अनुभव करता है, उस दिन जो ध्वनि बरसती है। जिस दिन व्यक्ति का आकार से बंध हुआ आकाश निराकार आकाश में गिरता है, जिस दिन व्यक्ति की छोटी-सी सीमित लहर असीम सागर में खो जाती है, उस दिन जो संगीत बरसता है, उस दिन जो ध्वनि का अनुभव होता है, उस दिन जो मूल-मंत्र गूंजता है, उस मूल-मंत्र का नाम ओंकार है। ओंकार जगत की परम शांति में गूंजने वाले संगीत का नाम है।

गीता में कृष्ण कहते है – “मैं जानने योग्य पवित्र ओंकार हूं”

ओंकार का अनुभव इस जगत का आत्यंतिक, अंतिम अनुभव है। कहना चाहिए, दि आल्टिमेट फ्रयूचर। जो हो सकती है आखिरी बात, वह है ओंकार का अनुभव।

ओंकार जगत की परम शांति में गूंजने वाले संगीत का नाम है।
ओंकार का अर्थ है – “दि बेसिक रियलिटी” वह जो मूलभूत सत्य है, जो सदा रहता है।
जब तक हम शोरगुल से भरे है, वह सूक्ष्मतम् ध्वनि नहीं सुन सकते।

संगीत दो तरह के हैं। एक संगीत जिसे पैदा करने के लिए हमें स्वर उठाने पड़ते हैं, शब्द जगाने पड़ते हैं, ध्वनि पैदा करनी पड़ती है। इसका अर्थ हुआ, क्योंकि ध्वनि पैदा करने का अर्थ होता है कि कहीं कोई चीज घर्षण करेगी, तो ध्वनि पैदा होगी। जैसे मैं अपनी ताली बजाऊं, तो आवाज पैदा होगी। यह दो हथेलियों के बीच जो घर्षण होगा, जो संघर्ष होगा, उससे आवाज पैदा होगी।

तो हमारा जो संगीत है, जिससे हम परिचित हैं, वह संगीत संघर्ष का संगीत है। चाहे होंठ से होंठ टकराते हों, चाहे कंठ के भीतर की मांस-पेशियां टकराती हों, चाहे मेरे मुंह से निकलती हुई वायु का ध्क्का आगे की वायु से टकराता हो, लेकिन टकराहट से पैदा होता है संगीत। हमारी सभी ध्वनियां टकराहट से पैदा होती हैं। हम जो भी बोलते हैं, वह एक व्याघात है, एक डिस्टरबेंस है।

ओंकार उस ध्वनि का नाम है, जब सब व्याघात खो जाते हैं, सब तालियां बंद हो जाती हैं, सब संघर्ष सो जाता है, सारा जगत विराट शांति में लीन हो जाता है, तब भी उस सन्नाटे में एक ध्वनि सुनाई पड़ती है। वह सन्नाटे की ध्वनि है; “Voice of Silence” वह शून्य का स्वर है। उस क्षण सन्नाटे में जो ध्वनि गूंजती है, उस ध्वनि का, उस संगीत का नाम ओंकार है। अब तक हमने जो ध्वनियां जानी हैं, वे पैदा की हुई हैं। अकेली एक ध्वनि है, जो पैदा की हुई नहीं है; जो जगत का स्वभाव है; उस ध्वनि का नाम ओंकार है। इस ओंकार को कृष्ण कहते हैं, यह अंतिम भी मैं हूं। जिस दिन सब खो जाएगा, जिस दिन कोई स्वर नहीं उठेगा, जिस दिन कोई अशांति की तरंग नहीं रहेगी, जिस दिन जरा-सा भी कंपन नहीं होगा, सब शून्य होगा, उस दिन जिसे तू सुनेगा, वह ध्वनि भी मैं ही हूं। सब के खो जाने पर भी जो शेष रह जाता है। जब कुछ भी नहीं बचता, तब भी मैं बच जाता हूं। मेरे खोने का कोई उपाय नहीं है, वे यह कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, मेरे खोने का कोई उपाय नहीं है। मैं मिट नहीं सकता हूं, क्योंकि मैं कभी बना नहीं हूं। मुझे कभी बनाया नहीं गया है। जो बनता है, वह मिट जाता है। जो जोड़ा जाता है, वह टूट जाताहै। जिसे हम संगठित करते हैं, वह बिखर जाता है। लेकिन जो सदा से है, वह सदा रहता है।

इस ओंकार का अर्थ है, दि बेसिक रियलिटी;वह जो मूलभूत सत्य है, जो सदा रहता है। उसके ऊपर रूप बनते हैं और मिटते हैं, संघात निर्मित होते हैं और बिखर जाते हैं, संगठन खड़े होते हैं और टूट जाते हैं, लेकिन वह बना रहता है। वह बना ही रहता है। यह जो सदा बना रहता है, इसकी जो ध्वनि है, इसका जो संगीत है, उसका नाम ओंकार है। यह मनुष्य के अनुभव की आत्यंतिक बात है। यह परम अनुभव है।

इसलिए आप यह मत सोचना की आप बैठकर ओम-ओम का उच्चार करते रहें, तो आपको ओंकार का पता चल रहा है। जिस ओम का आप उच्चार कर रहे हैं, वह उच्चार ही है। वह तो आपके द्वारा पैदा की गई ध्वनि है।

इसलिए धीरे-धीरे होंठ को बंद करना पड़ेगा। होंठ का उपयोग नहीं करना पड़ेगा। फिर बिना होंठ के भीतर ही ओम का उच्चार करना। लेकिन वह भी असली ओंकार नहीं है। क्योंकि अभी भी भीतर मांस-पेशियां और हड्डियां काम में लाई जा रही हैं। उन्हें भी छोड़ देना पड़ेगा। भीतर मन में भी उच्चार नहीं करना होगा। तब एक उच्चार सुनाई पड़ना शुरू होगा, जो आपका किया हुआ नहीं है। जिसके आप साक्षी होते हैं, कर्ता नहीं होते हैं। जिसको आप बनाते नहीं, जो होता है, आप सिर्फ जानते हैं।

जिस दिन आप अपने भीतर ओंम की उस ध्वनि को सुन लेते हैं, जो आपने पैदा नहीं की, किसी और ने पैदा नहीं की; हो रही है, आप सिर्फ जान रहे हैं, वह प्रतिपल हो रही है, वह हर घड़ी हो रही है। लेकिन हम अपने मन में इतने शोरगुल से भरे हैं कि वह सूक्ष्मतम ध्वनि सुनी नहीं जा सकती। वह प्रतिपल मौजूद है। वह जगत का आधार है

Tuesday, 21 November 2017

Ek ek point ko dhyan se padhiye

*Ek ek point ko dhyan se padhiye*

*Quote 1 .* जब लोग आपको *Copy* करने लगें तो समझ लेना जिंदगी में *Success* हो रहे हों.

*Quoted 2 .* कमाओ…कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे.

*Quote 3 .* जिस व्यक्ति के सपने खत्म, उसकी तरक्की भी खत्म.

*Quote 4 .* यदि *“Plan A”* काम नही कर रहा, तो कोई बात नही *25* और *Letters* बचे हैं उन पर *Try* करों.

*Quote 5 .* जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की.

*Quote 6 .* भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं.

*Quote 7 .* अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं.

*Quote 8 .* कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता.

*Quote 9 .* महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है.

*Quote 10 .* जिस चीज में आपका *Interest* हैं उसे करने का कोई टाईम फिक्स नही होता. चाहे रात के *1* ही क्यों न बजे हो.

*Quote 11 .* अगर आप चाहते हैं कि, कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद कीजिये.

*Quote 12 .* सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते.

*Quote 13 .* जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं.

*Quote 14 .* जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.

*Quote 15 .* यदि लोग आपके लक्ष्य पर *हंस* नहीं रहे हैं तो समझो *आपका लक्ष्य बहुत छोटा हैं.*

*Quote 16 .* विफलता के बारे में चिंता मत करो, आपको बस एक बार ही सही होना हैं.

*Quote 17 .* सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था.

*Quote 18 .* हुनर तो सब में होता हैं फर्क बस इतना होता हैं किसी का *छिप* जाता हैं तो किसी का *छप* जाता हैं.

*Quote 19 .* दूसरों को सुनाने के लिऐ अपनी आवाज ऊँची मत करिऐ, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाऐं कि आपको सुनने की लोग मिन्नत करें.

*Quote 20 .* अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है ‘सूरज’ फिर भी उगता हैं.

*Quote 21 .* पहचान से मिला काम थोडे बहुत समय के लिए रहता हैं लेकिन काम से मिली पहचान उम्रभर रहती हैं.

*Quote 22 .* जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के *फैन* मत बनो.

*Quote 23 .* जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही.

*Quote 24 .* आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं.

*Quote 25 .* कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती हैं.

*Quote 26 .* इंतजार करना बंद करो, क्योकिं सही समय कभी नही आता.

*Quote 27 .* जिस दिन आपके *Sign #Autograph* में बदल जाएंगे, उस दिन आप *बड़े आदमी बन जाओगें.*

*Quote 28 .* काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे.

*Quote 29 .* तब तक पैसे कमाओ जब तक तुम्हारा बैंक बैलेंस तुम्हारे फोन नंबर की तरह न दिखने लगें.

*Quote 30 .* *अगर एक हारा हुआ इंसान हारने के बाद भी मुस्करा दे तो जीतने वाला भी जीत की खुशी खो देता हैं. ये हैं मुस्कान की ताकत.

Monday, 20 November 2017

माँ पद्मावती का जौहर चित्तौड़गढ़ दुर्ग विवाह

चित्तौड़गढ़ दुर्ग विवाह         
माँ पद्मावती का जौहर

जब किले में रसद सामग्री समाप्त हो गई, चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) के रावल रतनसिंह सभी मनसबदारों और सेनापति सरदारों से मन्त्रणा कर के इस नतीजे पर पहूँचे कि....
           धोखा तो हमारे साथ हो चुका है हमने वही भूल की जो हमारे पूर्वज करते रहे परंतु धर्म यही कहता है कि अतिथि देवो भव ओर शत्रु ने हमारी पीठ मे छूरा घोंपा है हम ने धर्म की रक्षा की धर्म हमारी रक्षा करेगा...
             सबसे बड़ी बात कि हमारी सारी योजनाए निष्फल होती  जा रही है,  क्योंकि कोई भी सेना बिना भोजन के युद्ध लड़ना तो दूर ज़िन्दा भी नही रह सकती...

             हमने बहुत प्रयास कर लिए की युद्ध ना हो एक राजपूत स्त्री को विधर्मी देखे यह असहनीय  कृत्य भी हम सहन  कर चुके है परंतु विधि का कुछ और ही विधान है जो हमारा मूल धर्म भी, ह़ैे शायद भवानी रक्त पान करना चाहती है....

         चित्तोड़ दुर्ग का कोमार्य भंग होने का समय आ गया है।।

रतन सिंह के मुख को निहार रही थी समस्त सेना ओर कुछ अद्भूत सुनने की अभिलाषा हो रही थी!

           रावल ने कहा- हम परम सौभाग्यशाली है जो -#दुर्ग के विवाह का अवसर महादेव ने हमें दिया है ।  इसे रक्त के लाल रंग ओर जौहर की गुलाल से सुसज्जित करने की तैयारी हो और महाकाल के स्वागत मे नरमुंड की माला अर्पित करने का अवसर ना चुके कोई सेनानी...
हमें अब अपनी रजपूती को लाज्जित नहीं करना...!!!

            प्रात: किले के द्वार खोल दिये जाये, और अपने आराध्य का स्वागत केशरिया बाना पहन कर करे जौहर कुंड को सजाया जाये महाकाल के प्रसाधन में रूपवातियों के देह की दिव्य भस्म  गुलाल तेैयार की जाये..
              इतना सुनते ही मर्दाना सरदारो के आभा मंड़ल पर दिव्य तेज बिखर गया, और जनाना सरदार अपने दिव्य जौहर की कल्पना में आत्म विभोर  हो उठे। बात रनिवास तक पहुँची पूरे दुर्ग मे एक दिव्य वातावारण बन गया हर एक वीर ओर वीरांगना हर्ष  और उल्लास से भरपूर हर हर महादेव के नारे लगाने  लगे, मानो इसी दिन का इंतजार कर रहे हो..

   हर कोई महादेव का वरण करने को वंदन करने को आतुर था!

           बादल बोल उठा मैंने तो पहले ही कहा था , ये -तुर्क विश्वास के लायक नहीं  परंतु मेरी किसी ने नहीं मानी राजपूत वीरों की भुजायें फड़कने  लगी ओर नेत्रों मे शत्रु के चित्र उतर आये!

            मानो विवाह की तैयारियों में डूब गया किला,किले को सजाने में लग गए समस्त किलेवासी कहीं आने वाले के दीदार में कोई कमी ना रह जाये, मेरे महाकाल आने वाले है...!!!
इतना व्यस्त तो दुर्ग राजतिलक के समय भी नही रहा होगा और इतनी ख़ुशी तो राजकुमार के जन्म पर भी नहीं थी ...
वाह! कितना सुन्दर दिख रहा है दुर्ग,इसका विवाह जो है लो मुहूर्त भी निकल आया -जौहर का ब्रह्म मुहूर्त..

राजपूत अपनी तलवारों बरछो, भालों को चमकाने में और केशरिया बाना  बांधने में..
तो क्षत्राणियां अपने अपने संदुको से विवाह के लाल, हरे जोड़े निकाल कर एक दूसरे को दिखाती हुई पूछ रही थी मुझ पर ये कैसा रहेगा? ननदें अपनी भाभीयों को सजाने में तो भाभीयाँ अपनी ननदों को संवारने में व्यस्त हो गई, रखडी़, गोरबंद, झूमका, बिन्दी, नथनी, टीका, पायजेब, चुडी़ ,कंगन, बिछुडी़, बाजूबंद, हार, और मंगलसूत्र सजने लगे...

           हर  स्त्री को इतना सजने की ललक को फेरों के समय भी नहीं थी उस दिन भी किसी के लिये सजना था ओर आज भी लेकिन उस दिन पीहर से बिछड़ने का गम था आज तो बस मिलन ही मिलन है...

            पूरे किले मे एक अभूतपूर्व महोत्सव की तैयारियां हो रही थी मानो ये अवसर बड़ी मुश्किल से मिला हो ओर चेहरो की रौनक ऐसी कि कल बारात में जाने की उत्सुकता हो!

           कुंड पर चन्दन की लकड़ियाँ नारियल, देशी घी, और पूजन की सामग्री इकट्ठी की गई गंगा जल के कलश, और तुलसी पत्र की  व्यवस्था सुनिश्चित की गई, राज पुरोहित ने रनिवास में ख़बर भेजी की जौहर सूर्य की पहली किरण के दर्शन करने उपरांत शुरू हो जायेगा।

      और अग्रिम और अंतिम पंक्ति महारानी सुनिश्चित करे!!!

जैसे युद्ध में हरावल में रहने की होड़ रहती है जोहर में भी प्रथम पंक्ति में रहने की और महारानी के साथ रहने की होड़ मच गई!

ढ़ोल, नंगाड़े,शाहनाइयाँ और मृदंग बजने लगे, हाथी , घोडे़ और सवार सजने लगे, परंतु सबसे ज्यादा उत्साह तो औरतों में था!

            सुबह होने वाली थी ब्रह्म मुहूर्त ना चुक जाये सभी सती स्त्रियों ने अंतिम बार अपने सुहाग के दर्शन किए महारानी- पदमावती ने रावल के चरणों का वन्दन किया-- और  फिर मुड़ कर नही देखा रतन सिंह कुछ कहना चाहते थे परंतु --भवानी के मुख का तेज देख उनका मुँह ना खुल पाया-- आज -रानी पद्मिनी उनको अपनी पत्नी नही महाकाली सी प्रतीत हो रही थी, हो भी क्यों ना? महाकाल की भस्म बनने जो जा रही हैे उनमें विलीन होने जा रही है!
           जौहर स्थल पर स्वस्थी वाचन शुरू हुआ पुरोहितों की टोली ने  वैदिक मंत्रो से पूजन शुरू करवाया और मुख मे़ तुलसी पत्र, गंगा जल, हाथ में नारियल पकड़कर सूर्य की ओर मुख करके प्रथम  पंक्ति महारानी " पदमावती" के साथ तैयार थी मोक्ष के मार्ग पर बढ़ने को तैयार थी !
           सनातन धर्म की हिन्दू धर्म की अस्मिता और रघु कुल की आन  शान की रक्षा करने को, सनातन धर्म के लिये स्वयं की अाहुती देने को अग्नि मंत्रोचार के साथ प्रज्वलित कर  दी गई और उसमें नारियल, घी डाल दिया गया अग्नि की  लपटे भगवा  रंग की मानो सूर्य का अरूणोदय स्वरूप अस्ताचल में जाने को आतुर हो और अंधकार मेवाड़ को अपनी आगोश  में लेने का अन्देशा देता हो, वैदिक मंत्र सुन प्रथम पंक्ति की क्षत्राणियाँ कूद पडी अग्नि में क्षण भर मे स्वाहा...हो गई अग्नि सी पावन अग्नि में मिल गई

           अग्नि और घृत का मिलन देह को क्षण भर में ही भस्म बना रही था देखते ही देखते एक कुंड मे 16000 क्षत्राणियाँ भस्म बन गई और पूरे दुर्ग पर एक दिव्य सुगन्ध फैल गई जो पूर्व में कभी किसी ने महसूस नहीं की थी!

            उनके मुख पर इतना तेज था की अग्नि भी मंद पड़ जाये,पुरोहित के स्वाहा के साथ ही सभी देवियों ने  अपने तन की अाहुतियाँ दे दी!
            अभी विवाह की एक रस्म बाकी थी दुर्ग पर फैली दिव्य सुगंध ने सभी रजपूतों को कसुमापान करने पर मजबुर कर दिया,,,, भस्म तैयार थी अब महाकाल के स्वागत की बारी थी ....

           अपनी 80 साल की माँ ओर 19 साल की पत्नी के जौहर की तैयारी कर रहे -#बादल  के नेत्रों में मानो जल सुख गया जब तक बादल की माँ तैयार हो जौहर कुंड पर आ गई, बादल के सामने पतराय आंखो से देखकर सोचने  लगी कभी सुख नहीं मिला मेरे बेटे को 3साल की उम्र मे पिता चल  बसे अब 3-4 साल के अपने ही बच्चों  को अपने हाथों कैसे मारेगा?इतने में माँ और पत्नी अग्नि में प्रवेश कर गई! उसके सामने उसका स्वाहा हो गया!

           फिर 4 साल की मिनाल को फेकने लगा उसने अपने बाबोसा का कुर्ता पकड़ लिया और बोलने लगी की अब लड़ाई नही करुँगी आप कहोगे वो करुँगी कीरान को भी नही मारूंगी मुझे मत मारो इतने में  हाथ छुड़ा लिया और एक चीख के साथ...
और मासुम 3 साल का किरानं जो सब समझ चुका था मासुम निगाहों से अपने बाप को देख कर बोला बाबोसा मे बडा़ हो कर आप के साथ इन तुर्को को मारूँगा मैं तो आदमी हूँ, बादल ने उसे भी  धक्का दे दिया!
तब तक सारा जौहर सम्पूर्ण हो चुका था और रजपूतों के लिये खो ने को कुछ नहीं बचा था!

           राजपूती वीरों ने तलवारों से अपने हाथों को ओर घोड़े से पीठ को बांध लिया था हर हर महादेव के जयकारों के साथ
केशरिया बाना पहन कर कसुमापान कर वीर कूद पडे़ समरांगण मे एक एक ने 100-100 को मारा परंतु संख्या मे तुर्क ज्यादा थे!
फिर चढ़ाने लगे नरमुंडो के हार और लाल रक्त से महाकाल के स्वागत मे पूरे द्वार को रंग दिया 30000 नर मुंडो से स्वागत किया अपने आराध्य का और दुर्ग का विवाह सम्पन्न हुआ महाकाल के स्वागत में यही तो होता है ;भस्म रक्त, नरमुंड और बाजों में कुत्तों का सियारों का विलाप मूर्त लाशों को काल भैरव के कुत्ते खूब आनन्द से खा  रहे थे..
दुर्ग अब कुँवारा नहीं रहा आज उसका विवाह हो गया ऐसे ही होता है ; दुर्ग का विवाह

अब ये कौन कह रहा है कि द्वार खिलजी के स्वागत मे खोले गए......????
              हा हा हा हा हा उसे कौन समझाये ... नादान जो ठहरा .....

           खिलजी को यह महसूस हो गया की चित्तौड़ ने उसके लिये नहीं किसी और के स्वागत में द्वार खोला है वो ठगा सा दुर्ग के दृश्य को निहारने लगा और सोचने लगा ये इंसान नहीं हो सकते, ये तो दिव्य लोक के देवता हैं!

           उसे मन में ग्लानि हो उससे पहले एक विचार आया की ये मेरी वजह से नहीं किसी और के लिए था!
        मैं गुरूर करने लायक भी नहीं, लौट गया नमन कर चित्तौड़ को..।।

           खिलजी ने चित्तौड़ में प्रवेश किया परंतु उसके स्वागत मे कुत्ते भी नहीं आये क्योंकि वो महाभोज  का आनन्द ले रहे थे फिर दुर्ग का ऐसा अद्भूत नजारा देख दुर्ग में एक रात भी नहीं गुजार पाया।

जो दृढ़ राखे धर्म को तिही राखे करतार
                                 जय महाकाल
                                 जय भवानी
                                हर हर महादेव...                            

हिन्दू शास्त्र में ईश्वर पूजा के विधान

हिन्दू शास्त्र में ईश्वर पूजा के विधान
हमारे हिन्दू शास्त्र में ईश्वर पूजा के कुछ खास विधान
दिए गए हैं. पथ पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन
नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पथ
का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ
इस प्रकार हैं.
1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते
हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य
होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त
होता है.
2 गणेश जी और
भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए.
3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए.
4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए.
5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये
नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये
तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार
नहीं करते हैं.
6 रविवार,एकादशी,द
्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में
तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए
7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार
को नहीं तोड़नी चाहिए.
8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए.
९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर
चढ़ा सकते हैं.
10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते
हैं.
11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क
कर चढ़ा सकते हैं.
12 हाथों में रख कर हाथों से फूल
नहीं चढ़ाना चाहिए.
13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए.
14 दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से
दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं.
15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए.
16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के
लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में
अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य
सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी.
17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल
नहीं रखना चाहिए.
18 स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए
यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहां से चली जाती है.
19 देवी देवताओं का पूजन दिन में पांच बार
करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम
पूजन और आरती होनी चाहिए. प्रात:9 से 10 बजे तक
दिवितीय पूजन और आरती होनी चाहिए,मध्याह्र में
तीसरा पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए
शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और
आरती होना चाहिए,रात्रि में 8 से 9 बजे तक
पाँचवाँ पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए.
20 आरती करने वालों को प्रथम चरणों की चार
बार,नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार
और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए
21 पूजा हमेशा पूर्व या उतर की ओर मुँह करके
करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में
करें
22 पूजा जमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर
ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम
को दीपक,एक घी का और एक तेल का रखें.
23 पूजा अर्चना होने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर
3 परिक्रमाएँ करें.
24 पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक
की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश
जी,सरस्वतीजी ,लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में
नहीं होनी चाहिए.
25 गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग
दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र
दो की संख्या में कदापि न रखें.अपने मंदिर में सिर्फ
प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं
फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित,
जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह
अमंगलकारक है एवं इनसे विपतियों का आगमन होता है.
26 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण
आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने
पूज्य माता --पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में
कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें .
27 विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात,
दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं
28 प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित
करना चाहिए कलश जल से पूर्ण, श्रीफल से युक्त
विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल
कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ
स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं
तुलसी का पूजन भी आवश्यक है
29 मकड़ी के जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें
अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है
30 घर में झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू लांघना,
पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है
दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते
हैं
31 घर में किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें.
क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि रात में लक्ष्मीजी घर
का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने
ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर
उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण
हो जायेगा
32 कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य
जलाना चाहिए,जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध
हो: वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े.
33 घर में नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें
34 घर में नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर
में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ
हावी नहीं होती हैं
35 सेंधा नमक घर में रखने से सुख श्री(लक्ष्मी)
की वृद्धि होती है
36 रोज पीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग
प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है
37 साबुत धनिया,हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे
तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने
से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है.
38 दक्षिणावर्त शंख जिस घर में होता है,उसमे
साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है
वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख
नहीं होने चाहिएँ.
39 घर में यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से
वहां धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल
बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पते की सहायता से
केसर के छींटे लगाने चाहिएँ.
40 एक मोती शंख,पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक
पत्थर,एक ताम्र सिक्का व थोड़ी सी नागकेसर एक
थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी)
की वृद्धि होगी.
41 आचमन करके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में
कदापि न पोंछें,इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ
होती हैं.
42 घर में पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व
पगड़ी पहननी चाहिए,रुमाल विशेष कर सफेद रुमाल शुभ
नहीं माना जाता है