गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी।
1 गौ माता जीस जगह खडी रहकर आनंद पुर्वक चैन की सांस लेती है। वहा वास्तु दोष समाप्त हो जाते है।
2 गौ माता मे तैतीस कोटी देवी देवताओं का वास है।
3 गौ माता जीस जगह खुशी से रभांने से देवी देवता पुष्प वर्षा करते है।
4 गौ माता के गले मे घंटी जरूर बांधे गाय के गले मे घंटी बजने से गौ आरती होती है।
5 जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पुजा करता है। उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है।
6 गौ माता के खुर्र मे नागदेवता का वास होता है। जहा गौ माता विचरण करती है। उस जगह साप बिच्छू नही आते है।
7 गौ माता के गोबर मे लक्ष्मी जी का वास होता है
8 गौ माता के मुत्र मे गंगाजी का वास होता है।
9 गौ माता के गोबर से बने उपलो का रोजाना घर दुकान मंदिर परिसरो पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता सकारात्मक ऊर्जा मिलती है
10 गौ माता के एक आख मे सुर्य व दुसरी आख मे चन्द्र देव का वास होता है।
11 गाय इस धरती पर साक्षात देवता है।
12 गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है मनोकामना पूर्ण करने वाली है।
13 गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगो की क्षमता को कम करता है।
14 गौ माता की पुछ मे हनुमानजी का वास होता है। कीसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पुछ से झाडा लगाने से नजर उतर जाती है।
15 गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबंड होता है। उस कुबंड मे सुर्य केतु नाडी होती है। रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबंड हाथ फेरने से रोगो का नाश होता है
16 गौ माता का दुध अमृत है
17 गौ माता धर्म की धुरी है।
गौ माता के बिना धर्म कि कल्पना नही कि जा सकती
18 गौ माता जगत जननी है।
19 गौ माता पृथ्वी का रूप है
20 गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है। गौ माता के बिना देवो वेदो की पुजा अधुरी है।
21 एक गौ माता को चारा खिलाने से तैतीस कोटी देवी देवताओ को भोग लग जाता है।
22 गौ माता से ही मनुष्यो के गौत्र की स्थापना हुई है।
23 गौ माता चौदह रत्नो मे ऐक रत्न है।
24 गौ माता साक्षात माँ भवानी का रूप है।
25 गौ माता के पंचगव्य के बिना पुजा पाठ हवन सफल नही होते है।
26 गौ माता के दुध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारो रोगो की दवा है। इसके सेवन से असाध्य रोग मीट जाते है
27 गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है। उनकी अकाल मृत्यु नही होती है।
28 तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है। वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड़ कर पार करता है। उन्हें गौलोकधाम मे वास मीलता है
28 गौ माता के गोबर से इधंन तैयार होता है।
29 गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यो की आराध्य है इष्ट देव है।
30 साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है।
31 गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है।
32 गौ माता मे दिव्य शक्तिया होने से संसार का संतुलन बना रहता है।
33 गाय माता के गौवंशो से भुमी को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है
34 गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है। गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है।
35 जंहा गौ माता निवास करती है। वह स्थान तिर्थ धाम बन जाता है।
36 गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तिर्थो के पुण्यो का लाभ मीलता है।
37 जीस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली मे गुड को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है।
38 गौ माता के चारो चरणो के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है।
39 गाय माता आनंद पुर्वक सासें लेती है । छोडती है। वहा से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है। सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। वातावरण शुद्ध होता है
40 गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे
41 गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लीये है।
42 जब गौ माता बछडे को जन्म देती तब पहला दुध बांज स्त्री को पिलाने से उनका बांजपन मीट जाता है।
43 स्वस्थ गौ माता का गौ मुत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपडे मे छानकर सेवन करने से सारे रोग मीट जाते है
44 गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जीसे भी देखती है। उनके उपर गौकृपा हो जाती है
45 गाय इस संसार का प्राण है।
46 काली गाय की पुजा करने से नोह ग्रह शांत रहते है। जो मन पुर्वक धर्म के साथ गौ पुजन करता है। उनको शत्रु दोषो से छुटकारा मीलता है।
47 गाय धार्मिक आर्थिक व सांस्कृतिक आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है।
48 गाय एक चलता फीरता मंदिर है। हमारे सनातन धर्म में तैतिस कोटी देवी देवता है। हम रोजाना तैतीस कोटी देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नही कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते है।
49 कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नही हो रहा हो तो गौ माता के कान मे कहीये रूका हुआ काम बन जायेगा
50 जो व्यक्ति मोक्ष गौ लोक धाम चाहता हो उसे गौ व्रती बनना चाहिए ।
51 गौ माता सर्व सुखों की दातार है।
हे माँ आप अनंत आपके गुण अनंत इतना मुझमे सामर्थ्य नही की मे आपके गुणो का गान शब्दों में कर सकूँ।
जय गौ माता
Friday, 29 December 2017
गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी।
Thursday, 28 December 2017
वैदिक धर्म की विषेशताएं
वैदिक धर्म की विषेशताएं
(1) वैदिक धर्म संसार के सभी मतों और सम्प्रदायों का उसी प्रकार आधार है जिस प्रकार संसार की सभी भाषाओं का आधार संस्कृत भाषा है जो सृष्टि के प्रारम्भ से अर्थात् १,९६,०८,५३,११७ वर्ष से अभी तक अस्तित्व में है।संसार भर के अन्य मत,पन्थ किसी पीर-पैगम्बर,मसीहागुरु,महात्मा आदि द्वारा चलाये गये हैं,किन्तु चारों वेदों के अपौरुषेय होने से वैदिक धर्म ईश्वरीय है,किसी मनुष्य का चलाया हुआ नहीं है।
(2) वैदिक धर्म में एक निराकार,सर्वज्ञ,सर्वव्यापक,न्यायकारी ईश्वर को ही पूज्य(उपास्य) माना जाता है,उसके स्थान में अन्य देवी-देवताओं को नहीं।
(3) ईश्वर अवतार नहीं लेता अर्थात् कभी भी शरीर धारण नहीं करता।
(4) जीव और ईश्वर(ब्रह्म) एक नहीं हैं बल्कि दोनों की सत्ता अलग-अलग है और मूल प्रकृति इन दोनों से अलग तीसरी सत्ता है।ये तीनों अनादि हैं तीनों ही एक दूसरे से उत्पन्न नहीं होते।
(5) वैदिक धर्म के सब सिद्धान्त सृष्टिक्रम के नियमों के अनुकूल तथा बुद्धि सम्मत हैं।जबकि अन्य मतों के बहुत से सिद्धान्त बुद्धि की घोर उपेक्षा करते हैं।
(6) हरिद्वार,काशी,मथुरा,कुरुक्षेत्र,अमरनाथ,प्रयाग आदि स्थलों का नाम तीर्थ नहीं है।जो मनुष्यों को दुःख सागर से पार उतारते हैं उन्हें तीर्थ कहते हैं।विद्या,सत्संग,सत्यभाषण,पुरुषार्थ,विद्यादान,जितेन्द्रियता,परोपकार,योगाभ्यास,शालीनता आदि शुभ तीर्थ हैं।
(7) भूत-प्रेत डाकिन आदि के प्रचलित स्वरुप को वैदिक धर्म में स्वीकार नहीं किया जाता है।भूत-प्रेत शब्द आदि तो मृत शरीर के कालवाची शब्द हैं और कुछ नहीं।
(8) स्वर्ग के देवता अलग से कोई नहीं होते।माता-पिता,गुरु,विद्वान तथा पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु आदि ही स्वर्ग के देवता होते हैं,जिन्हें यथावत रखने व यथायोग्य उपयोग करने से सुख रुपी स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
(9) स्वर्ग और नरक: स्वर्ग और नरक किसी स्थान विषेश में नहीं होते,सुख विशेष का नाम स्वर्ग और दुःख विशेष का नाम नरक है और वे भी इसी संसार में शरीर के साथ ही भोगे जाते हैं।स्वर्ग-नरक के सम्बन्ध में गढ़ी हुई कहानियों का उद्देश्य केवल कुछ निष्कर्मण्य लोगों का भरण-पोषण करना है।
(10) मुहूर्तः जिस समय चित्त प्रसन्न हो तथा परिवार में सुख-शान्ति हो वही मुहूर्त है।ग्रह नक्षत्रों की दिशा देखकर पण्डितों से शादी ब्याह,कारोबार आदि के मुहूर्त निकलवाना शिक्षित समाज का लक्षण नहीं है।,क्योंकि दिनों का नामकरण हमारा किया हुआ है,भगवान का नहीं अतः दिनों को हनुमान आदि के व्रतों और शनि आदि के साथ जोड़ना व्यर्थ है।अर्थात् अवैदिक है।
(11) राशिफल एवं फलित ज्योतिष: ग्रह नक्षत्र जड़ हैं और जड़ वस्तु का प्रभाव सभी पर एक सा पड़ता है अलग-अलग नहीं।अतः ग्रह नक्षत्र देखकर राशि निर्धारित करना एवं उन राशियों के आधार पर मनुष्य के विषय में भांति-भांति की भविष्यवाणियां करना नितान्त अवैज्ञानिक है।जन्मपत्री देखकर वर-वधू का चयन करने के बजाए हमें गुण-कर्म-स्वभाव एवं चिकित्सकीय परीक्षण के आधार पर ही रिश्ते तय करने चाहिएं।जन्मपत्रियों का मिलान करके जिनके विवाह हुए हैं क्या वे दम्पति पूर्णतः सुखी हैं?विचार करें राम-रावण व कृष्ण-कंस की राशि एक ही थी।
(12) चमत्कार: दुनिया में चमत्कार कुछ भी नहीं है।हाथ घुमाकर चेन,लाकेट बनाना एवं भभूति देकर रोगों को ठीक करने का दावा करने वाले क्या उसी चमत्कार विद्या से रेल का इंजन व बड़े-बड़े भवन बना सकते हैं?या कैंसर,ह्रदय तथा मस्तिष्क के रोगों को बिना आपरेशन के ठीक कर सकते हैं?यदि वह ऐसा कर सकते हैं तो उन्होंने अपने आश्रमों में इन रोगों के उपचार के लिए बड़े-२ अस्पताल क्यों बना रखे हैं?वे अपनी चमत्कारी विद्या से देश के करोड़ों अभावग्रस्त लोगों के दुःख-दर्द क्यों नहीं दूर कर देते?असल में चमत्कार एक मदारीपन है जो धर्म की आड़ में धर्मभीरु जनता के शोषण का बढ़िया तरीका है।
(13) गुरु और गुरुडम: जीवन को संस्कारित करने में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है।अतः गुरु के प्रति श्रद्धाभाव रखना उचित है।लेकिन गुरु को एक अलौकिक दिव्य शक्ति से युक्त मानकर उससे 'नामदान' लेना,भगवान या भगवान का प्रतिनिधि मानकर उसका अथवा उसके चित्र की पूजा अर्चना करना ,उसके दर्शन या गुरु नाम का संकीर्तन करने मात्र से सब दुःखों और पापों से मुक्ति मानना आदि गुरुडम की विष-बेल है अर्थात् वैदिक मान्यताओं के विरुद्ध है।अतः इसका परित्याग करना चाहिए।
(14) मृतक कर्म : मनुष्य की मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर का दाहकर्म करने के पश्चात् अन्य कोई करणीय कार्य शेष नहीं रह जाता।आत्मा की शान्ति के लिए करवाया जाने वाला गरुड़पुराण आदि का पाठ या मन्त्र जाप इत्यादि धर्म की आड़ लेकर अधार्मिक लोगों द्वारा चलाया जाने वाला प्रायोजित पाखण्ड है अर्थात् वैदिक मान्यताओं के विरुद्ध है।
(15) राम,कृष्ण,शिव,ब्रह्मा,विष्णु आदि ईश्वर के अवतार
(16) जो मनुष्य जैसे शुभ या अशुभ (बुरे) कर्म करता है उसको वैसा ही सुख या दुःख रुप फल अवश्य मिलता है।ईश्वर किसी भी मनुष्य के पाप को किसी परिस्थिति में क्षमा नहीं करता है।
(17) मनुष्य मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है,चाहे वह स्त्री हो या शूद्र।
(18) प्रत्येक राष्ट्र में राष्ट्रोन्नति के लिए गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर चार ही प्रकार के पुरुषों की आवश्यकता है इसीलिए वेद में चार वर्ण स्थापित किये हैं-१.ब्राह्मण,२.क्षत्रिय,३.वैश्य ,४.शूद्र ।
(19) व्यक्तिगत उन्नति के लिए भी मनुष्य की आयु को चार भागों में बांटा गया है इन्हें चार आश्रम भी कहते हैं।२४ वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य आश्रम,२५ से ५० वर्ष की अवस्था तक गृहस्थाश्रम,५० से ७५ वर्ष की अवस्था तक वानप्रस्थाश्रम और इसके आगे संन्यासाश्रम माना गया है।
(20) जन्म से कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य या शूद्र नहीं होता।अपने-अपने गुण-कर्म-स्वभाव से ब्राह्मण आदि कहलाते हैं,चाहे वे किसी के भी घर में उत्पन्न हुए हों।
(21) आज जिसको शूद्र मानते है के घर उत्पन्न कोई भी मनुष्य जाति या जन्म के कारण अछूत नहीं होता।जब तक गन्दा है तब तक अछूत है चाहे वह जन्म से ब्राह्मण हो या शूद्र कोई।
(22) वैदिक धर्म पुनर्जन्म को मानता है।अच्छे कर्म अधिक करने पर अगले जन्म में मनुष्य का शरीर और बुरे कर्म करने पर पशु,पक्षी,कीट-पतंग आदि का शरीर,अपने कर्मों को भोगने के लिए मिलता है।जैसे अपराध करने पर मनुष्य को कारागार में भेजा जाता है।
(23) गंगा-यमुना आदि नदियों में स्नान करने से पाप नहीं धुलते।वेद के अनुसार उत्तम कर्म करने से व्यक्ति भविष्य में पाप करने से बच सकता है।जल से तो केवल शरीर का मल साफ होता है आत्मा का नहीं।
(24) पंच महायज्ञ करना प्रत्येक गृहस्थी के लिए आवश्यक है।
(25) मनुष्य के शरीर,मन तथा आत्मा को संस्कारी(उत्तम) बनाने के लिए गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्त्येष्टि पर्यन्त १६ संस्कारों का करना सभी गृहस्थजनों का कर्तव्य है।
(26) मूर्तिपूजा,सूतियों का जल विसर्जन,जगराता,कांवड लाना,छुआछूत,जाति-पाति,जादू-टोना,डोरा-गंडा,ताबिज,शगुन,जन्मपत्री,फलित ज्योतिष,हस्तरेखा,नवग्रह पूजा,अन्धविश्वास,बलि-प्रथा,सतीप्रथा,मांसाहार,मद्यपान,बहुविवाह आदि सामाजिक कुरीतियां वैदिक राह से भटक जाने के बाद हिन्दू धर्म के नाम से बनी हुई हैं वेदों में इनका नाम भी नहीं है।
(27) वेद के अनुसार जब मनुष्य सत्यज्ञान को प्राप्त करके निष्काम भाव से शुभकर्मों को प्राप्त करता है और महापुरुषों की भांति उपासना से ईश्वर के साथ सम्बन्ध जोड़ लेता है।तब उसकी अविद्या (राग-द्वेष आदि की वासनाएं) समाप्त हो जाती है।मुक्ति में जीव ३१ नील,१० खरब,४० अरब वर्ष तक सब दुःखों से छूटकर केवल आनन्द का ही भोग करके फिर लौटकर मनुष्यों में उत्तम जन्म लेता है।
(28) जब-जब मिलें तब-तब परस्पर 'नमस्ते शब्द' बोलकर अभिवादन करें।यही भारत की प्राचीनतम वैदिक प्रणाली है।
(29) वेद में परमेश्वर के अनेक नामों का निर्देश किया है जिनमें मुख्य नाम 'ओ३म्' है।शेष नाम गौणिक कहलाते हैं अर्थात् यथा गुण तथा नाम।
Monday, 25 December 2017
अपने भारत की संस्कृति को पहचानें
अपने भारत की संस्कृति को पहचानें
दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !
चार युग - सतयुग, त्रेता युग, द्वापरयुग एवं कलयुग !
चार धाम - द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !
चर वेद- ऋग्वेद, अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, बानप्रस्थ एवं संन्यास !
चार अंतःकरण - मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार !
पञ्च गव्य - गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र एवं गोबर , !
पञ्च देव - गणेश, विष्णु, शिव, देवी और सूर्य !
पंच तत्त्व - प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश !
छह दर्शन- वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !
सप्त ऋषि - विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप !
सप्त पूरी - अयोध्या पूरी, मथुरा पूरी, माया पूरी ( हरिद्वार ), काशी, कांची (शिन कांची - विष्णु कांची), अवंतिका और द्वारिका पूरी !
आठ योग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधी !
आठ लक्ष्मी - आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग एवं योग लक्ष्मी !
नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
दस दिशाएं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय, आकाश एवं पाताल !
मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, बामन, परशुराम, श्रीराम, कृष्ण, बलराम, बुद्ध एवं कल्कि !
बारह मास - चेत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाड़, श्रावन, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फागुन !
बारह राशी - मेष, ब्रषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, ब्रश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं कन्या !
बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर !
पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा , अमावश्या !
स्म्रतियां - मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ !
।।सत्य सनातन धर्म की जय हो।।
Sunday, 24 December 2017
मेरी कविताएं युद्ध की घोषणा करने जैसी है : अटल बिहारी वाजपेयी
मेरी कविताएं युद्ध की घोषणा करने जैसी है : अटल बिहारी वाजपेयी
25 दिसम्बर 2014 को राष्ट्रपति कार्यालय में अटल बिहारी वाजपेयी जी को भारत का सर्वोच्च पुरस्कार “भारत रत्न” दिया गया (घोषणा की गयी थी)। उन्हें सम्मान देते हुए भारत के राष्ट्रपति खुद 27 मार्च 2015 को उनके घर में उन्हें वह पुरस्कार देने गये थे। उनका जन्मदिन 25 दिसम्बर “गुड गवर्नेंस डे” के रूप में मनाया जाता है।
वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके पिता कृष्णा बिहारी वाजपेयी अपने गाव के महान कवी और एक स्कूलमास्टर थे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के बारा गोरखी के गोरखी ग्राम की गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में वे शिक्षा प्राप्त करने ग्वालियर विक्टोरिया कॉलेज (अभी कॉलेज) गये और हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत में डिस्टिंक्शन से पास हुए। उन्होंने कानपूर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन एम.ए में पूरा किया। इसके लिये उन्हें फर्स्ट क्लास डिग्री से भी सम्मानित किया गया था।
ग्वालियर के आर्य कुमार सभा से उन्होंने राजनैतिक काम करना शुरू किये, वे उस समय आर्य समाज की युवा शक्ति माने जाते थे और 1944 में वे उसके जनरल सेक्रेटरी भी बने।
1939 में एक स्वयंसेवक की तरह वे राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये। और वहा बाबासाहेब आप्टे से प्रभावित होकर, उन्होंने 1940-44 के दर्मियान आरएसएस प्रशिक्षण कैंप में प्रशिक्षण लिया और 1947 में आरएसएस के फुल टाइम वर्कर बन गये।
विभाजन के बीज फैलने की वजह से उन्होंने लॉ की पढाई बीच में ही छोड़ दी। और प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश भेजा गया और जल्द ही वे दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म (हिंदी मासिक ), पंचजन्य (हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों के लिये काम करने लगे। वाजपेयी ने कभी शादी नही की, वे जीवन भर कुवारे ही रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के 10 वे पूर्व प्रधानमंत्री है। वे पहले 1996 में 13 दिन तक और फिर 1998 से 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे। वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता है, भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेसरहित भारत की पांच साल तक सेवा करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री थे।
इसके अलावा लोकसभा चुनावो में वाजपेयी जी ने नौ बार जीत हासिल की है। जब उन्होंने स्वास्थ समस्या के चलते राजनीती से सन्यास ले लिया था तब उन्होंने 2009 तक लखनऊ, उत्तर प्रदेश के संसद भवन की सदस्य बनकर भी सेवा की है।
वाजपेयी भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य भी है, वाजपेयी जी में भारतीय जन संघ का संचालन भी किया है। मोरारजी देसाई के कैबिनेट में वे एक्सटर्नल अफेयर (बाहरी घटना / विवाद) मंत्री भी रह चुके है।
जिस समय जनता सरकार पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी थी उस समय वाजपेयी जी ने जन संघ को भारतीय जनता पार्टी के नाम से 1980 में पुनर्स्थापित किया। और पूरा जीवन उसी के लिये समर्पीत किया।
अटल बिहारी वाजपेयी का निजी जीवन -
वाजपेयी ने एक लड़की नमिता को दत्तक ले रखा है। नमिता को भारतीय डांस और म्यूजिक में काफी रूचि है। नमिता को प्रकृति से भी काफी लगाव है और वे हमेशा हिमाचल प्रदेश के मनाली में छुट्टिया मनाने जाती ही है।
वाजपेयी उनकी कविताओ के बारे में कहते है की, “मेरी कविताये मतलब युद्ध की घोषणा करने जैसी है, जिसमे हारने का कोई डर न हो। मेरी कविताओ में सैनिक को हार का डर नही बल्कि जीत की चाह होगी। मेरी कविताओ में डर की आवाज नही बल्कि जीत की गूंज होगी।”
अटल बिहारी वाजपेयी के अवार्ड –
1992 : पद्म विभूषण
1993 : डी.लिट (डॉक्टरेट इन लिटरेचर), कानपूर यूनिवर्सिटी
1994 : लोकमान्य तिलक पुरस्कार
1994 : बेस्ट संसद व्यक्ति का पुरस्कार
1994 : भारत रत्न पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त अवार्ड
2015 : भारत रत्न
2015 : लिबरेशन वॉर अवार्ड (बांग्लादेश मुक्तिजुद्धो संमनोना)
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के अन्य प्रमुख कार्य –
11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया।
19 फ़रवरी 1999 को पकिस्तान से अच्छे संबंधों में सुधार की पहल करतें हुए सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस की सेवा शुरू की गई।
स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना
कावेरी जल विवाद को सुलझाया, जो 100 साल से भी ज्यादा पुराना विवाद था।
संरचनात्मक ढाँचे के लिये बड़ा कार्यदल, विद्युतीकरण में प्रगति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, आदि का गठन किया।
देश के सभी हवाई अड्डों एवं राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास किया; कोकण रेलवे तथा नई टेलीकॉम नीति की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने जैसे कदम उठाये।
आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, भी गठित कीं। जिस वजह से काफी जल्दी काम होने लगे।
अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त करके आवास निर्माण को प्रोत्साहन दिया।
उन्होंने बीमा योजना की भी शुरवात की जिस वजह से ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगोंको (NRI) काफी फायदा हुआ।