Friday, 17 August 2018

शिवताण्डवस्तोत्रम्

🍂🍂।।शिवताण्डवस्तोत्रम्।।🍂🍂

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जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलंब्यलम्बिताम् भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्व्यम् चकार चण्डताण्डवम् तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।
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जटाकटाह सम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ।।२।।
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धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।३।।
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जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतम् बिभर्तु भूतभर्तरि ।।४।।
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सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणीविधुसराङ्घ्रिपीठभुः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायताम् चकोरबन्धुशेखरः।।५।।
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ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकम् नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरम् महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः।।६।।
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करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्जवलद् धनञ्जयाहुतिकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।
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नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत कुहुनिशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः।।८।।
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प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा वलम्बिकण्ठकन्दलीरूचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।९।।
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अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्धकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।१०।।
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जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमीद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः।।११।।
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दृषद्विचित्रतलपयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयो: सुहृद्विपक्षपक्षयो। तृणारविन्द चक्षुषो: प्रजामहिमहेन्द्रयो: सम्प्रवर्तिकः कदा सदा शिवम् भजाम्यहम्।।१२।।
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कदानिलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मति: सदा शिरस्थ मञ्जलींवहन्।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।
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इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्।।१४।।
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पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भु:।।१५।।
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।।इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डव स्त्रोतम् सम्पूर्णम्।।
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🙌नमः पार्वती पतये हर हर हर महादेव🙌

Saturday, 4 August 2018

आप सिर्फ हिन्दू हैं ! एक रहें सशक्त रहें !

सोचियेगा अवश्य

बनिया कंजूस होता है,
नाई चतुर होता है,
ब्राह्मण धर्म के नाम पे बेबकूफ बनाता है,
राजपूत अत्याचारी होते हैं,
चमार गंदे होते हैं,
जाट और गुर्ज्जर बेवजह लड़ने वाले होते हैं,
मारवाड़ी लालची होते हैं........

और ना जाने ऐसी कितनी परम ज्ञान की बातें सभी हिन्दुओं को आहिस्ते - आहिस्ते सिखाई गयी !

नतीजा हीन भावना, एक दूसरे जाती पर शक, आपस में टकराव होना शुरु हुआ और अंतिम परिणाम हुआ की मजबूत, कर्मयोगी और सहिष्णु हिन्दू समाज आपस में ही लड़कर कमजोर होने लगा !

उनको उनका लक्ष्य प्राप्त हुआ ! हजारों साल से आप साथ थे...आपसे लड़ना मुश्किल था..अब आपको मिटाना आसान है !

आपको पूछना चाहिए था की अत्याचारी राजपूतों ने सभी जातियों की रक्षा के लिए हमेशा अपना खून क्यों बहाया ?
आपको पूछना था की अगर चमार, दलित को ब्राह्मण इतना ही गन्दा समझते थे तो बाल्मीकि रामायण जो एक दलित ने लिखा उसकी सभी पूजा क्यों करते हैं ? और चाणक्य ने चन्द्रगुप्त ही क्यूँ चुने??

अपने नहीं पूछा की आपको सोने का चिड़ियाँ बनाने में मारवाड़ियों और बनियों का क्या योगदान था ?
जिस डॉम को आपने नीच मान लिया, उसी के दिए अग्नि से आपको मुक्ति क्यों मिलती है ?
जाट और गुर्जर अगर लड़ाके नहीं होते तो आपके लिए अरबी राक्षसों से कौन लड़ता ?

जैसे ही कोई किसी जाति की कोई मामूली सी भी बुरी बात करे, टोकिये और ऐतराज़ कीजिये !

याद रहे, आप सिर्फ हिन्दू हैं !
एक रहें सशक्त रहें !
मिलजुल कर मजबूत भारत का निर्माण करें !