Sunday, 2 April 2017

क्या हिन्दू धर्म और सनातन धर्म एक हैं?

क्या हिन्दू धर्म और सनातन धर्म एक हैं?

हर धर्म को एक विश्वास या एक सिद्धांत से जोड़ कर देखा जाता है। लेकिन आज के स्पॉट में सद्‌गुरु बड़े ही साफ शब्दों में यह स्पष्ट कर रहे हैं कि सनातन धर्म विश्वास करना नहीं खोजना सिखाता है। तो फिर हिन्दू धर्म क्या है? क्या यह सनातन धर्म का दूसरा नाम है? या फिर यह कुछ अलग है?

आप लोग सनातन धर्म को एक यूनिवर्सिटी के मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका मतलब हुआ कि आप एक विशाल और परम प्रक्रिया को एक सीमित और कहीं छोटे मंच पर रखने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि अब वो समय आ गया है, जब ऐसा करना ही होगा, इसमें कोई दो राय ही नहीं है। लेकिन ऐसा करते समय कुछ बुनियादी सावधानियां बरतने की जरूरत है, ताकि यह किसी धर्म शास्त्र के अध्ययन जैसा बन कर न रह जाए, बल्कि यह लोगों के भीतर ज्ञान की लालसा जगाने का कारण बन कर उभरे।
सनातन धर्म कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है, जो आपको बताए कि आप इस पर विश्वास कीजिए, वर्ना आप मर जाएंगे। यह इस तरह की संस्कृति नहीं है। यह आपको कुछ ऐसा बताता है, जो आपके मन में सवाल उठाए, ऐसे सवाल जिनके बारे में शायद आपने कभी कल्पना भी नहीं की हो।
मानव बुद्धि या समझ की प्रकृति ही खोजने की है। लोगों के भीतर यह जिज्ञासा इसलिए खत्म होती गई, क्योंकि उन पर विश्वास या मत थोपे गए।
सनातन धर्म की पूरी प्रक्रिया आपके भीतर प्रश्नों को खड़ा करने के लिए ही है। और सबसे बड़ी बात यह आपके सवालों के ‘रेडिमेड जवाब’ नहीं देता, बल्कि यह आपके भीतर इस तरह से सवाल खड़े करने की गहनता लाता है कि आप खुद ब खुद इन सवालों के जवाब का स्रोत तलाश लेते हैं। तो जिज्ञासा का वो आयाम या स्तर लाने के लिए इसमें कुछ महत्वपूर्ण सावधानियां बरतने की जरूरत है, ताकि यह एक दूसरी तरह का आध्यात्मिक अध्ययन भर बन कर न रह जाए।
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि भारत से बाहर भी बहुत सारे लोगों में कुछ चीजों को स्थापित करने की बेचैनी धीरे-धीरे घर करती जा रही है। दूसरे धर्मों के आगे निकल जाने की भावना पैदा हो रही है। इस कोशिश में वह पूरे शाश्वत व सनातन ज्ञान को महज एक पवित्र किताब या ग्रंथ तक सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं और अपेक्षा कर रहे हैं कि सभी इसका अनुसरण करें। यह कभी हमारा तरीका रहा ही नहीं है। लोग आज यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हरेक व्यक्ति को गीता का अनुसरण करना चाहिए। जबकि ऐसा नहीं है। अर्जुन ने खुद गीता के उपदेश के दौरान लाखों सवाल किए। अगर आप बस सीधे-सीधे गीता का अनुसरण करेंगे, तो गीता के उपदेश का बुनियादी मकसद ही खो जाएगा।
हमारा बुनियादी मकसद अपने तरीकों को दूसरों पर थोपने की बजाय दुनिया में हरेक इंसान के भीतर खोजने का भाव लाने का होना चाहिए। वैसे भी कोई ‘हमारा तरीका’ नहीं है। हमें किसी खास तरीके या रास्ते की जरूरत ही नहीं है। हमने यह खोजा है और पाया है कि अगर अपने जीवन को इस तरह से संचालित करें तो हमेशा एक बेहतर परिणाम मिलेगा – व्यक्ति के लिए भी और एक बड़े स्तर पर समाज के लिए भी। लेकिन फिर भी हम यह नहीं कह रहे हैं कि ‘बस यही तरीका’ है। इस पर रोज सवाल उठाए जा सकते हैं – लाखों सवाल पूछे जा सकते हैं। अगर आप सवालों से डरते हैं तो इसका मतलब है कि आपका तरीका, आपका विश्वास एक बेहद कच्ची जमीन पर खड़ा है, जो मेरे दो-चार सवाल पूछते ही भरभरा कर गिर पड़ेगा। अगर आप सच्चाई पर खड़े हैं तो मैं आपसे लाखों सवाल भी पूछ लूं तो दिक्क्त क्या है? सवालों से दिक्कत तभी है, जब आप झूठ पर खड़े होते हैं। कभी कोई सवाल गलत नहीं होता, हां जवाब गलत हो सकते हैं।
तो सनातन धर्म का मकसद लोगों में जिज्ञासा की गहन भावना को जगाना होना चाहिए – अपने विचार थोपने का नहीं, क्योंकि यह तरीका काम भी नहीं करेगा। अगर कोई भयानक युद्ध या कोई ऐसी भयानक दुर्घटना ना हो जाए जो इस धरती पर मानव-जीवन की नींव ही हिला दे, तो आप देखेंगे अगले पचास सालों में ‘योग’ किसी भी धर्म से ज्यादा प्रभावशाली होगा। जब हम ‘योग’ की बात करते हैं तो हमारा मतलब उन अभ्यासों से है, जिनकी ओर सनातन धर्म के सिद्धांत इशारा करते हैं।
मानवता के इतिहास में पहली बार मावन-बुद्धि इतनी विकसित और पुष्पित-पल्लवित हो रही है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। सदियों से ऐसा होता आया है कि पूरे गांव में एकाध इंसान ऐसा होता था, जो सबकी तरफ से सोचता था। अब वो समय चला गया।
आप देखेंगे कि आने वाले पचास सालों में सिर्फ वही सिद्धांत, वही तरीका काम करेगा, जिसके पीछे कोई सार्थक कारण हो और जो ऐसा व्यावहारिक समाधान पेश कर सके जिसे आप अपनी जिंदगी में लागू कर सकते हों।
जल्द ही हर आदमी अपने बारे में अपने तरीके से सोचेगा। और फिर दुनिया की हर चीज, हर आदमी की पहुंच में होगी। और जब यह होगा तब यह नीति काम नहीं करेगी कि – अगर मेरे अनुसार नहीं चले तो आप गए काम से।
जो सिद्धांत आपकी समस्याओं का समाधान स्वर्ग में दिलाने की बात करेंगे, वो काम नहीं करेंगे। दर्शन की ऐसी तमाम व्याख्याएं, जो तर्कों की कसौटी पर नहीं टिकेंगी, उनके कोई मायने नहीं होंगे। लोगों को हर समस्या का व्यावहारिक समाधान चाहिए। आप देखेंगे कि आने वाले पचास सालों में सिर्फ वही सिद्धांत, वही तरीका काम करेगा, जिसके पीछे कोई सार्थक कारण हो और जो ऐसा व्यावहारिक समाधान पेश कर सके जिसे आप अपनी जिंदगी में लागू कर सकते हों। दूसरी तरफ ऐसे समाधान जिसे अमल में न लाया जा सके, जिसे आपने देखा ही न हो, धीरे-धीरे मानव-जाति के लिए कम महत्वपूर्ण होते जाएंगे। यह तो केवल तभी संभव था जब इंसान की पहुंच अपने आसपास की घटनाओं तक या तो स्वाभाविक तौर पर अथवा जानबूझ कर, बेहद सीमित थी।
सनातन धर्म को आगे लाने का यह सबसे उपयुक्त समय है। साथ ही यह ध्यान में रखना भी बेहद महत्वपूर्ण है कि इसे हिन्दू धर्म के तौर पर प्रचारित न किया जाए, क्योंकि यह हिंदू धर्म है ही नहीं। हिंदुत्व का विचार ही अपने आप में एक विदेशी अवधारणा है, जो इस देश में कभी मौजूद ही नहीं थी। हिंदू शब्द इसकी भौगोलिक पहचान के चलते सामने आया। जो भूमि हिमालय और हिंद महासागर के बीच में पड़ती थी, उसे हिन्दू कहा गया। मेरी इस बात की वजह से भारत में काफी विवाद खड़ा हो रहा है, खासकर भारत का राष्ट्रीय मीडिया इसे काफी उठा रहा है, कि मैं कहता हूं कि भारत में पैदा हुआ एक केंचुआ भी हिन्दू केंचुआ है। इस पर वे चैंकते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। मैं कहता हूं, अगर आप अफ्रीका में पैदा हुए एक हाथी को अफ्रीकन हाथी कह सकते हैं तो फिर हिंदुस्तान में पैदा हुए एक केंचुए को एक हिन्दू केंचुआ कहने में समस्या क्या है? इसी तरह से यहां पैदा हुआ एक टिड्डा भी हिंदू है और इसी आधार पर आप भी हिंदू माने जाएंगे। इसी तरह जो इस धरती पर पैदा हुए वे हिन्दू कहलाये।
हमने अपनी पहचान इस धरती के भौगौलिक गुणों के साथ जोड़ ली। हमें अपनी समझ व बुद्धि से खोज करने और अपनी आध्यात्मिक प्रक्रिया खुद तैयार करने की आजादी छह से आठ हजार सालों तक मिली। यहां बिना किसी दूसरों के हस्तक्षेप या बिना दूसरों के आक्रमण के हम अपना संगीत, अपना गणित, अपना खगोल शास्त्र चरम ऊंचाइयों तक ले जा सके। ऐसा इसलिए संभव था, क्योंकि हिमालय और हिन्द महासागर हमारी रक्षा व बचाव करते थे। हम लोग अपनी इन दोनों भौगोलिक पहचानों के प्रति गहन सम्मान की वजह से खुद को हिंदू कहने लगे, क्योंकि इन दोनों के बिना हम हजारों सालों से चली आ रही अपनी संस्कृति को बचाए नहीं रख सकते थे।
जब कुछ लोग बाहर से यहां आएं तो वे सिर्फ इतना ही समझ पाए कि व्यक्ति या तो इस समूह से संबंधित हो सकता है या उस समूह से। ऐसे ही लोगों ने इस संस्कृति को हिंदुत्व का नाम दिया। उससे पहले तक यहां हिंदुत्व जैसी कोई चीज नहीं थी। इसलिए अब वो समय आ गया है कि हम खोजने के भाव को वापस लाएं। इसका किसी विश्वास या मत से संबंध नहीं है। यह ‘मेरा धर्म बनाम आपका धर्म’ का मामला नहीं है। यह इससे जुड़ा है कि हम अपने आसपास की हर चीज पर पूरे सम्मान के साथ गौर करें और महसूस करें कि हम क्या सर्वश्रेष्ठ कर सकते हैं। यही सनातन धर्म की प्रकृति है। यही वजह है कि यह सनातन और शाश्वत है। अगर आप अपने विश्वास या मत मुझ पर थोपेंगे तो यह कितनी देर तक काम करेगा। सनातम धर्म अगर शाश्वत है तो वह सिर्फ इसलिए, क्योंकि इसमें जो कुछ भी बताया गया है, वह इंसान के समझ या बुद्धि के अनुकूल है। यही वजह है कि यह हमेशा रह सकता है।
सनातन धर्म उस परम कल्याण की बात करता है, जो कि एकमात्र कल्याण है जिसकी पूरी दुनिया आकांक्षा कर सकती है। अगर हम वाकई चाहते हैं कि पूरी दुनिया सनातन धर्म का अभ्यास करे, तो यह बेहद महत्वपूर्ण है कि इसकी पहचान किसी भी रूप में स्थापित नहीं होनी चाहिए। मानव बुद्धि या समझ की प्रकृति ही खोजने की है। लोगों के भीतर यह जिज्ञासा इसलिए खत्म होती गई, क्योंकि उन पर विश्वास या मत थोपे गए। उन्हें बताया गया ‘जो कुछ है, यही है’ और अगर आप इस पर विश्वास नहीं करेंगे तो आप जिंदा ही नहीं रह सकते। डर, अपराधबोध और पसंद का इस्तेमाल करके मानव बुद्धि की प्राकृतिक जिज्ञासा को जबरदस्त तरीके से खत्म कर दिया गया। मानवता के परम कल्याण के लिए यह बेहद जरूरी है कि हरेक व्यक्ति के जीवन में जिज्ञासा का एक गहन भाव लाया जाए। यही सनातन धर्म का असली लक्ष्य है।

Wednesday, 1 March 2017

गौदुग्ध – धरती का अमृत

गाय का दूध धरती का अमृत है. विश्व में गौ दुग्ध के सामान पौष्टिक आहार दूसरा कोई नहीं है. गाय के दूध को पूर्ण आहार माना गया है. यह रोग निवारक भी है. गाय के दूध का कोई विकल्प नहीं है. यह एक दिव्य पदार्थ है.

वैसे भी गाय के दूध का सेवन करना गौ माता की महान सेवा करना ही है. क्योकि इससे गोपालन को बढ़ावा मिलता है और अप्रत्यक्ष रूप से गाय की रक्षा ही होती है. गाय के दूध का सेवन कर गौमाता की रक्षा में योगदान तो सभी दे ही सकते है.

गाय के दूध, दही, घी, गोबर रस, गो-मूत्र का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहलाता है. पंचगव्य का सेवन करने से मनुष्य के समस्त पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते है, जैसे जलती आग से लकड़ी भस्म हो जाते है.

मानव शरीर का ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका पंचगव्य से उपचार  नहीं हो सकता. पंचगव्य से पापजनित  रोग भी नष्ट हो जाते है

Monday, 27 February 2017

सभी प्रकार के रोगों की दवा दूध

सभी प्रकार के रोगों की दवा दूध दूध पुराने समय से ही मनुष्य को बहुत पसन्द है। दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन `सी´ को छोड़कर शरीर के लिए सभी पोषक तत्त्व यानि विटामिन हैं। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन माना गया है। सभी दूधों में माता के दूध को श्रेष्ठ माना जाता है, दूसरे क्रम में गाय का दूध है। बीमार लोगों के लिए गाय का दूध श्रेष्ठ है। गैस तथा मन्दपाचनशक्ति वालों को सोंठ, इलायची, पीपर, पीपरामूल जैसे पाचक मसाले डालकर उबला हुआ दूध पीना चाहिए। दूध को ज्यादा देर तक उबालने से उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं और दूध गाढ़ा हो जाता है। दूध को उबालकर उससे मलाई निकाली जाती है। मलाई गरिष्ठ, शीतल (ठण्डा), बलवर्धक, तृप्तिकारक, पुष्टिकारक, कफकारक और धातुवर्धक है। यह पित, वायु, रक्तपित एवं रक्तदोष को खत्म करती है। गुड़ डाला हुआ दूध मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) को खत्म करता है, यह पित्त और बलगम को बढ़ाती है। सुबह का दूध विशेषकर शाम के दूध की तुलना में भारी व ठण्डा होता है। रात में पिया हुआ दूध बुद्धिवर्द्धक, टी.बी.नाशक, बूढ़ों के लिए वीर्यप्रद आदि दोषों को खत्म करने वाला होता है। खाने के बाद होने वाली जलन को शान्त करने के लिए रात में दूध पीना चाहिए। दूध ज्यादा जलन वालों, कमजोर शरीर वालों, बच्चों, जवानों और बूढ़ों सभी के लिए अत्यन्त लाभकारी है। यह जल्दी ही वीर्य पैदा करती है।

भैंस के दूध में चर्बी की मात्रा होने से वह पचने में भारी रहता है। `चरक´ के अनुसार गाय का दूध स्वादिष्ट, शीतल (ठण्डा), कोमल, भारी और मन को खुश करने वाला होता है। बकरी का दूध कषैला, मीठा, शीतल, मन को रोकने वाला तथा हल्का होता है। यह रक्तपित्त, अतिसार (दस्त), क्षय (टी.बी.), खांसी तथा बुखार को दूर करता है। बकरियां कद में छोटी होती हैं और तीखे व कड़वे पदार्थ सेवन करती हैं, पानी कम पीती है, मेहनत अधिक करती हैं। अत: उनका दूध सारे रोगों को खत्म करता है। स्वस्थ बकरी का दूध ज्यादा निरोग माना जाता है। गाय के दूध की तुलना में बकरी का दूध जल्दी पचता है। अत: छोटे बच्चों के लिए यह लाभकारी है। स्त्री का दूध हल्का, ठण्डा, जलन एवं वायु, पित, आंखों के रोग और ‘शूलनाशक है। यह नाक से सूंघने से तथा आंखों में डालने के लिए गुणकारी है। अलग-अलग प्राणियों के दूध की अलग- अलग विशेषताएं हैं। भैंस का दूध निद्राकारक (नींद लाने वाला) है।

बकरी का दूध खांसी, अतिसार (दस्त) और बुखार को दूर करता है। भेड़ का दूध गर्मी और पथरी को दूर करता है। घोड़ी का दूध गर्म और बलकारी होता है। ऊंटनी का दूध जलोदर (पेट में पानी भरना) को मिटाता है।

गधी का दूध बच्चों को शक्ति प्रदान करता है, और दिल को मजबूत बनाता है यह खांसी में भी ज्यादा लाभकारी है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार- दूध पाचक, दिल-दिमाग को खुश करने वाला, शरीर को कोमल तथा मजबूत बनाने वाला, शरीर की रौनक बढ़ाने वाला, बुद्धिवर्द्धक एवं अर्श (बवासीर), क्षय (टी.बी.) और बुढ़ापे की बीमारियों में लाभकारी है। दुग्धकल्प और दुग्ध आहार : दूध एक सम्पूर्ण आहार होता है। इसमें सभी आवश्यक तत्व उपस्थिति होते हैं। सभी दूधों में भी गाय का दूध सर्वाधिक लाभदायक होता है। बशर्तें गाय को आहार अच्छा दिया जाए और दूध दुहने में स्वच्छता बरती जाए यदि गाय, भैंस और बकरी स्वस्थ है तो सीधे थन से ही अथवा एक उबाल का दूध पीना चाहिए। दूध आहार और दुग्धकल्प में थोड़ा अन्तर है। दूध आहार में दूध के साथ अन्य आहार भी लिया जाता है किन्तु दुग्धकल्प में सिर्फ दूध ही पिया जाता है, वह भी योजनाबद्ध तरीके से।

1 : शिशु शक्तिवर्धक बच्चे बड़े होने पर कमजोर हो या उन्हें सूखा रोग (रिकेटस) हो तो उन्हें दूध में बादाम मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

2 : शक्तिवर्धक आधा किलो दूध में 250 ग्राम गाजर को कद्दूकस से छोटे-छोटे पीस करके उबालकर सेवन करने से दूध जल्दी हजम हो जाता है। दस्त साफ आता है व दूध में लोहे की मात्रा अधिक हो जाती है।

3 : स्त्रीप्रसंग (संभोग) के बाद की कमजोरी स्त्री प्रसंग (संभोग) करने के बाद एक गिलास दूध में 5 बादाम पीसकर मिलाएं और इसमें 1 चम्मच देशी घी डालें और पी जाएं। इस प्रयोग से बल मिलता है। नामर्दी दूर करने के लिए सर्दियों के मौसम में दूध में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग केसर डालकर पीना चाहिए।

4 : अम्लपित्त जिन्हें अम्लपित्त (पेट से कंठों तक जलन) हो, उन्हें दिन में 3 बार ठण्डा दूध पीने से लाभ होता है।गाय या बकरी के दूध का प्रयोग करना चाहिए। भैंस के दूध का सेवन हानिकारक होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। आधा गिलास कच्चा दूध, आधा गिलास पानी, 2 पिसी हुई छोटी इलायची मिलाकर सुबह पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

5 : थकान थकावट दूर करने के लिए 1 गिलास गर्म दूध सेवन करना चाहिए।

6 : होठों का सौन्दर्य 1 चम्मच कच्चे दूध में थोड़ा-सा केसर मिलाकर होंठों पर मालिश करने से होंठों का कालापन दूर होकर रौनक बढ़ती है।

7 : चेहरे का सौन्दर्य चेहरे पर से झांई, मुंहासे और दाग-धब्बे हटाने के लिए रात को सोने से पहले गर्म दूध चेहरे पर मलें, फिर आधे घंटे के बाद साफ पानी से धोयें इससे चेहरे की सुन्दरता बढे़गी, दूध की झाग चेहरे पर मलने से दाग-धब्बे समाप्त हो जाते हैं।चेहरे पर झांई, कील, मुंहासे, दाग, धब्बे दूर करने के लिए सोने से पहले गर्म दूध चेहरे पर मले, चेहरा धोएं। आधा घंटे बाद साफ पानी से चेहरा धोएं। इससे चेहरे का सौन्दर्य बढ़ेगा। चेहरे के धब्बों पर ताजे दूध के झाग मिलने से धब्बे मिट जाते हैं। सोते समय चेहरे पर दूध की मलाई लगाने से भी कील-मुहांसे तथा दाग-धब्बों पर ताजे दूध के झाग मलने से धब्बे मिट जाते हैं।

8 : खुजली दूध में पानी मिलाकर रूई के फाहे से ‘शरीर पर रगड़ने के थोड़ी देर बाद स्नान करने से खुजली मिट जाती है।

9 : आधासीसी का दर्द सूर्योदय (सुबह सूरज उगने से पहले) से पहले गर्म दूध के साथ जलेबी या रबड़ी खाने से आधाशीशी (आधे सिर के दर्द) का दर्द दूर हो जाता है। 50 ग्राम बकरी के दूध में लगभग 50 ग्राम भांगरे के रस को मिलाकर धूप में गर्म होने के लिए रख दें। अब इस मिले हुए दूध में लगभग 5 ग्राम कालीमिर्च के चूर्ण को मिलाकर सिर में मलने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है। सूरज के उगने से पहले दूध के साथ गर्म-गर्म जलेबी खाने से आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द दूर हो जाता है।

10 : आंखों के रोग आंखों में चोट लगी हो, जलन हो रही हो, मिर्च-मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो या दर्द होता हो, तो रूई के फाहे को दूध में भिगोकर आंखों पर रखने से आराम मिलता है। दूध की 2 बूंदे दूध आंखों में भी डालने से भी लाभ होता है।

11 : आंखों में अवांछित चीज गिर जाना आंखों के अन्दर तिनका या कोई चीज गिर जाए और वह निकल न रहा हो तो आंख में दूध की 3 बूंदे डालें। दूध की चिकनाहट से अवांछित चीज आंख से बाहर निकल जाएगी।

12 : सांस की नली के रोग दूध में 5 पीपल डालकर गर्म करें, इसमें चीनी डालकर सुबह और ‘शाम पीने से सांस की नली के रोग जैसे खांसी, जुकाम, दमा, फेफड़े की कमजोरी तथा वीर्य की कमी आदि रोग दूर होते हैं।

13 : वीर्य की पुष्टता सुबह नाश्ते में 1 केला, 10 ग्राम देशी घी के साथ खाकर ऊपर से दूध पी लें। दोपहर के बाद 2 केले, लगभग 30 ग्राम खजूर, 1 चम्मच देशी घी खाकर ऊपर से दूध पीयें। ऐसा रोजाना करने से ‘शरीर में वीर्य की मात्रा बढ़ जाती है।

14 : मूत्राशय के रोग मूत्राशय के रोग में दूध में गुड़ मिलाकर पीने से लाभ होता है।

15 : बच्चों के दांत गलना बच्चों को दूध पिलाने के बाद थोड़ा- सा पानी पिलायें। बच्चे को कोई भी चीज खाने-पीने के बाद थोड़ा- सा पानी पिलाएं और कुल्ले करायें। इससे बच्चों के दांत नहीं गलते हैं।

16 : दस्त छोटे बच्चों को दस्त हो तो गर्म दूध में चुटकीभर पिसी हुई दालचीनी डालकर पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं। बड़ों को इसे दोगुनी मात्रा में पिलाना चाहिए।

17 : दूध पीने का उपयोगी समय सुबह के समय दूध पीना बहुत ही लाभकारी होता है। दूध का पाचन सूर्य की गर्मी से होता है। अत: रात को दूध नहीं पीना चाहिए। साधारणतया दूध सोने से तीन घंटे पहले पीना चाहिए। रात को ज्यादा गर्म दूध पीने से स्वप्नदोष होने की संभावना रहती है।

18 : दूध कैसा पीयें ताजा गर्म दूध पीना अच्छा रहता है। यदि यह सम्भव न हो तो दूध गर्म करके पीयें। गर्म उतना ही करें जितना गर्म पिया जा सकता है। दूध को ज्यादा उबालने से दूध के प्राकृतिक गुण समाप्त हो जाते हैं। दूध को बहुत उलट-पुलट कर झाग पैदा करके धीरे-धीरे पीने से दूध पीने में मजा आता है।

19 : दूध में मिठास चीनी में मिला दूध कफकारक होता है। अक्सर दूध में चीनी मिलाकर मीठा करके पीते हैं। चीनी मिलाने से दूध में जो कैल्शियम होता है वह खत्म हो जाता है। इसलिए दूध में चीनी मिलाना उचित नहीं होता है। दूध में प्राकृतिक मिठास होती है। फीके दूध को पीने से थोड़े ही समय में उसके प्राकृतिक मिठास का आभास होने लगता है और उसमें बाहर की कोई चीज डालकर मीठा करने की जरूरत नहीं होती है। जहां तक हो सके दूध में चीनी न मिलाएं अगर मिठास की जरूरत हो तो शहद, मीठे फलों का रस, मुनक्का को भिगोकर इसका पानी, गन्ने का रस या ग्लूकोज मिलायें। बूरा या मिश्री मिला हुआ दूध वीर्यवर्द्धक और त्रिदोषनाशक होता है।

20 : दूध का शीघ्र पाचन किसी-किसी बच्चे या व्यक्ति को दूध हजम नहीं होता या उन्हें दूध अच्छा नहीं लगता। इसके लिए दूध उबालते समय उसमें 1 पीपल डालकर दूध उबालकर पीयें। इससे पेट में गैस नहीं बनती। दूध में शहद मिलाकर पीने से भी पेट में गैस नहीं बनती है। दूध जल्दी पच जाता है। दूध के साथ नारंगी, मौसमी का रस मिलाकर पीने से या दूध पीकर ऊपर से नारंगी खाने से दूध जल्दी पच जाता है। अगर दूध बादी करता हो, गैस बनाता हो तो अदरक के टुकड़े या सोंठ का चूर्ण और किशमिश मिलाकर सेवन करना चाहिए।

21 : किन रोगों में दूध नहीं पीना चाहिए खांसी, दमा, दस्त, पेचिश, पेट दर्द और अपच के रोग में हमें दूध नहीं पीना चाहिए। इनमें ताजा छाछ (मट्ठा) पीना चाहिए।

22 : धारोष्ण दूध ताजा दूध निकालकर छानकर बिना गर्म किये ही उसमें मिश्री या शहद और भिगोई हुई किशमिश का पानी मिलाकर लगातार 40 दिन पीने से पुरुष का वीर्य बढ़ता है तथा आंखों की रोशनी भी तेज होती है। यह दूध खांसी, स्नायु की दुर्बलता, बच्चों का सूखा रोग, क्षय रोग (टी.बी), हिस्टीरिया, दिल की धड़कन आदि रोगों में भी बहुत उपयोगी है। छोटे-छोटे कमजोर बच्चों को यह दूध पीने से लाभ मिलता है।

23 : दूध पीने से संभोग की इच्छा उत्पन्न होती है 3 महीनों तक रोजाना रात को सोते समय दूध पीने से यौन या संभोग करने की दृष्टि से औरतों-आदमियों की संभोग करने की इच्छा और कामशक्ति के साथ- साथ संभोग करने का समय भी बढ़ जाता है। दूध में शहद मिलाकर पीने से पुरुष का वीर्य भी बढ़ जाता है।

24 : ऊपर का दूध पीने से दांत जल्दी खराब होना मां का दूध पीने वाले बच्चों से ज्यादा ऊपर का दूध पीने वाले बच्चों के दांत जल्दी खराब होते हैं क्योंकि दूध में मिलाई गई चीनी ही दांतों को खराब करती है।

25 : पेशाब की जलन गर्मी के मौसम में ज्यादा गर्म चीजें खाने से अगर पेशाब में जलन हो तो कच्चे दूध में पानी मिलाकर, लस्सी बनाकर पीने से लाभ मिलता है। 250 ग्राम दूध और 250 ग्राम पानी में चीनी मिलाकर पीने से पेशाब की जलन में लाभ होता है।

26 : सभी प्रकार के रोगों की दवा दूध कोई भी रोग हो, दिन में कम से कम 15 से 20 बार थोड़ा-थोड़ा दूध पीने से सारे रोगों में लाभ होता है।

27 : गाय के दूध कुछ सरल प्रयोग गाय के दूध में घी, सोंठ व मुनक्का डालकर उबालकर पीने से जीर्ण बुखार ठीक हो जाता है।गाय के दूध को गर्म करके उसमें मिश्री व कालीमिर्च का चूर्ण डालकर पीने से जुकाम दूर होता है।100 ग्राम दूध में 5 ग्राम सोंठ का चूर्ण डालकर उबालकर उसमें चीनी मिलाकर रात को सोते समय खाने से पित्त विकार दूर होता है।दूध के मावे में चीनी मिलाकर सेवन करने से आधासीसी (आधे सिर का दर्द) दूर हो जाता है।गाय के दूध में 5 गुना पानी मिलाकर पानी जलने तक उबालकर ठण्डा करके पीने से रक्तपित दूर होता है।गाय का दूध और पानी बराबर मात्रा में लेकर उबाल लें। उबलने पर जब केवल दूध शेष रह जाए तब इस दूध को पीने से पेचिश की शिकायत दूर हो जाती है।गाय का ताजा दूध और घी इकट्ठा कर उसमें मिश्री मिलाकर बच्चों को पिलाने से चेचक के बुखार में लाभ होता है।गाय के दूध में सोंठ को घिसकर सिर पर लेप करने से 7-8 घंटों में भयंकर सिर दर्द भी दूर होता है।गाय के दूध में रूई को भिगोकर उस पर फिटकरी का चूर्ण आंखों पर बांधने से दुखती हुई आंखें ठीक होती हैं।

28 : दूध के साथ इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएं दूध के साथ पका हुआ आम, दलिया, जमीकन्द, अनार, अंगूर, छुहारा, इलायची, लौंग कबाबचीनी तथा मिश्री इत्यादि खाने से लाभ होता है।

29 : दूध के साथ इस्तेमाल न की जाने वाली वस्तुएं दूध के साथ केला, अनन्नास, जामुन, मूली, धनिया, लहसुन, उड़द की दाल, मट्ठा, दही, इमली, आम की खटाई (अमचूर) आदि सेवन करना हानिकारक होता है।

30 : आन्त्रवृद्धि उबाले हुए हल्के गर्म दूध में 25-25 ग्राम गाय के पेशाब और शक्कर को मिलाकर सेवन करने से अण्डकोष में उतरी आंत्र अपने आप ऊपर चली जाती है।

31 : अण्डकोषवृद्धि 1 गिलास मीठे गर्म दूध में 25 ग्राम एरण्ड का तेल मिलाकर पीने से अण्डकोष वृद्धि ठीक होती है।

32 : आंख आना आंखों के लाल होने पर मोथा या नागर मोथा के कन्द को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से आराम आता है।मां का दूध 1-2 बूंदे बच्चे की आंखों में डालने से आंख आने का रोग दूर हो जाता है।श्वास या दमा का रोग : पतले दूध में पीपल डालकर पीना चाहिए। इससे श्वास या दमा रोग ठीक हो जाता है। रोगी को केवल गर्म पानी अथवा गर्म दूध पिलाने से कफ पतला होकर दमे के रोग में आराम मिलता है। दमे का दौरा पड़ने पर हल्के गर्म पानी में रोगी के दोनों पैरों को रख देते हैं। इससे बहुत लाभ मिलता है तथा इससे बढ़ी हुई सांस तुरन्त सामान्य हो जाती है।