Monday, 1 October 2018

जाति और वर्ण : तब और अब!


जाति और वर्ण : तब और अब!

🌷वेद में मानव को क्रता कहा गया ,मानव नामकरण मनु के नाम पर किया गया ।
🌷सरस्वती नदी के तट पर वैदिक सभ्यता का जन्म हुआ(सिन्ध नदी तट पर नही)।
🌷वैदिक सभ्यता को मानने वाली आर्य जाति और यह भू भाग आर्यावर्त कहलाया ।
🌷तब ब्रह्म ज्ञान रखने वाले को ही ब्राह्मण कहा गया।
🌷वर्ण व्यवस्था की शुरूआत सबसे पहले वैवस्वत मनु ने की।
🌷ब्रह्मा ऋषि के कोई भी पुत्र न था लेकिन उसने अपने काल के अपने शिष्यो को अपना मानस पुत्र माना ।
🌷उसने घने जंगलों से भरे आर्याव्रत मे जनसंख्या बृद्धि करने और राज्य व्यवस्था के लिए प्रजा मंडलो (राज्यो) का निर्माण किया और इन राज्यो पर शासन करने के लिये अपने इन शिष्यो को मानस पुत्र कहकर प्रजापतियों (राजा)को नियुक्त किया ।
(अपने हाथ,पैर,मुंह से इन्हे पैदा नही किया,हमे सत्य जानना चाहिए)
🌷उसने दस प्रजापतियो (राजा या शासक) को नियुक्त किया ।
🌷इनमे से एक थे मरिचि ऋषि ।
🌷मरिचि के अनेक पुत्रो मे एक थे कश्यप ऋषि ।
🌷कश्यप के अनेक पुत्रो मे से एक थे विवस्वान मनु जिसे सूर्य के समान होने के कारण सूर्य कहा गया ।
🌷विवस्वान के अनेक पुत्रो मे एक थे वैवस्वत मनु।
🌷और इन्ही ने मनुस्मृति बनाई।
🌷और इन्ही ने वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया ।

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वैदिक काल में जाति व्यवस्था नही थी,कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी।
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🌷उस काल में शिक्षा आरण्यको (जंगल) मे होती थी और हर नागरिक अपने पुत्र को पांच वर्ष पूरा होने पर शिक्षा के लिए इन आरण्यक मे स्थित आवासीय गुरूकुलों में भेजता था,विधार्थियों से कोइ शुल्क नहीं लिया जाता था ये सब के लिए ब्रह्मचर्य पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे।
🌷हर बालक के लिये यहां शिक्षा लेना आवश्यक था चाहे राजा हो या रंक।
🌷यहां गुरूकुल मे हर विद्यार्थी की बुद्धि व रूचि के अनुसार निशुल्क शिक्षा दी जाती थी।
🌷यहां दी गयी शिक्षा के अनुसार गुरूकुल का कुलपति छात्र को वर्ण प्रदान करता था।
🌷चार वर्ण मे जिन छात्रो की रूचि ज्ञान विज्ञान में रही और जिन्होने वेद सीखा ,उन्हे कुलपति ब्राह्मण की उपाधि देता था।
🌷जिन्होने अस्त्र शस्त्र विद्या सीखी उन्हे क्षत्रिय की उपाधि दी जाती थी ।
🌷जिन्होने व्यवसाय,पशुपालन या कृषि सीखी,उन्हे वैश्य की उपाधि दी जाती थी।
🌷जो कुछ नहीं सीख पाते थे उन्हे इन तीन वर्ण की सेवा व शिल्प सिखाकर शूद्र की उपाधि दी जाती थी।
🌷ध्यान रहे ब्राह्मण का पुत्र शिक्षा के बाद शूद्र बन सकता था और शूद्र का योग्य पुत्र शिक्षा पाकर ब्राह्मण बन सकता था।

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वैदिक काल में छात्र की योग्यता व ज्ञान के अनुसार वर्ण मिलता था जो कि पैत्रिक नही था।
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🌷हर छात्र जो शिक्षा ग्रहण करता था वही गृहस्थ जीवन में कर्म या व्यवसाय करता था और वही उसका वर्ण था।
🌷बाद के काल में ब्राह्मणो या गरूकुलो के कुलपतियों के नैतिक पतन और अपने पुत्र को ब्राह्मण वर्ण में बनाये रखने की इच्छा ने इस वर्ण व्यवस्था को जाति मे बदल कर पैत्रिक कर दिया।
🌷उदाहरण के लिए राजा दशरथ के पुत्र मोह के बाद भी दशरथ को राम व अन्य भाइयों को शिक्षा के लिए विश्वामित्र ऋषि के साथ भेजना पड़ा
🌷बाद के काल में द्रोणाचार्य ने धृतराष्ट्र के यहां नौकरी करते हुए पान्डओ व कौरवो को शिक्षा दी और एकलव्य को वनवासी होने के कारण शिक्षा देने से मना कर दिया ,ताकि वह क्षत्रिय न बन जाये।
🌷इससे सिद्ध होता है कि शिक्षको ने बाद में अपना पतन कर लिया था।
🌷जाति स्थान से बनती हैं जैसे अरब मे रहने वाले अरब जाति,जर्मनी में रहने वाले जर्मन जाति।
🌷इसी प्रकार भारत में रहने वाले आर्य जाति कहे गए।
🌷बाद में आर्य संस्कृति उत्तर में सिन्धु नदी के तट तक फैली और अरब आदि जातियो ने सिन्धु नदी के दक्षिण मे रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा और पश्चिम यूरोप की ओर रहने वाले लोगों ने इन्ड जाति कहा ।
🌷इस नाते इस भूभाग मे रहने वाले सभी हिन्दू या आर्य जाति है चाहे वह कोई भी मत माने :- 

हमे जाति (Race) और वर्ण मे अन्तर समझना चाहिये ।
                            

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