Sunday, 23 June 2019

सम्पूर्ण प्रातः स्मरण

सम्पूर्ण प्रातः स्मरण, जो कि दैनिक उपासना से उदधृत है, आप सभी इसे अपने जीवन में उतारें एवं अपने अनुजो को भी इससे अवगत कराएं।

कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम॥ १॥

समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमंड्ले।
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पाद्स्पर्श्म क्षमस्वे॥ २॥

ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी
भानु: शाशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनि-राहु-केतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥ ३॥

सनत्कुमार: सनक: सन्दन:
सनात्नोप्याsसुरिपिंलग्लौ च।
सप्त स्वरा: सप्त रसातलनि 
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥ ४॥

सप्तार्णवा: सप्त कुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त 
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥ ५॥

पृथ्वी सगंधा सरसास्तापथाप:
स्पर्शी च वायु ज्वर्लनम च तेज: नभ: सशब्दम महता सहैव 
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥ ६॥

प्रातः स्मरणमेतद यो
विदित्वाssदरत: पठेत।
स सम्यग धर्मनिष्ठ: स्यात्
संस्मृताsअखंड भारत:॥७॥

भावार्थ:
हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा ) का वास होता है। प्रातः काल में (पुरुषार्थ के प्रतीक) हाथों का दर्शन करें॥१॥

समुद्ररूपी वस्त्रोवाली, पर्वतरूपी स्तनवाली और विष्णु भगवान की पत्नी हे पृथ्वी देवी ! तुम्हे नमस्कार करता हूँ ! तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ॥ २॥

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