Tuesday, 5 May 2020

शिव मानस पूजा

शिव मानस पूजा

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं

नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।

जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा

दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥१॥

सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं

पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं ताम्बूलं

मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥२॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलम्

वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया

सङ्कल्पेन समर्पितं तवविभो पूजां गृहाण प्रभो॥३॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं

पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो

यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥४॥

करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा

श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधम्।

विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व

जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो॥५॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा संपूर्ण॥


 

शिव मानस पूजा का भावार्थ :- 

 

मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि हे पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप ग्रहण कीजिए।

 

मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

 

हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रहा हूँ। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपको प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।

 

हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।

 

हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।

 

ऐसी सुंदर भावनात्मक स्तुति द्वारा हम मानसिक शांति के साथ-साथ ईश्वर की कृपा बिना किसी साधन संपन्न कर सकते हैं। मानसिक पूजा का शास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है। इस शिव मानस पूजा कृपा का दिव्य साक्षात्‌ प्रसाद मनुष्य को निरंतर ग्रहण करते रहने की आवश्यकता है।




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