Monday, 1 October 2018

जाति और वर्ण : तब और अब!


जाति और वर्ण : तब और अब!

🌷वेद में मानव को क्रता कहा गया ,मानव नामकरण मनु के नाम पर किया गया ।
🌷सरस्वती नदी के तट पर वैदिक सभ्यता का जन्म हुआ(सिन्ध नदी तट पर नही)।
🌷वैदिक सभ्यता को मानने वाली आर्य जाति और यह भू भाग आर्यावर्त कहलाया ।
🌷तब ब्रह्म ज्ञान रखने वाले को ही ब्राह्मण कहा गया।
🌷वर्ण व्यवस्था की शुरूआत सबसे पहले वैवस्वत मनु ने की।
🌷ब्रह्मा ऋषि के कोई भी पुत्र न था लेकिन उसने अपने काल के अपने शिष्यो को अपना मानस पुत्र माना ।
🌷उसने घने जंगलों से भरे आर्याव्रत मे जनसंख्या बृद्धि करने और राज्य व्यवस्था के लिए प्रजा मंडलो (राज्यो) का निर्माण किया और इन राज्यो पर शासन करने के लिये अपने इन शिष्यो को मानस पुत्र कहकर प्रजापतियों (राजा)को नियुक्त किया ।
(अपने हाथ,पैर,मुंह से इन्हे पैदा नही किया,हमे सत्य जानना चाहिए)
🌷उसने दस प्रजापतियो (राजा या शासक) को नियुक्त किया ।
🌷इनमे से एक थे मरिचि ऋषि ।
🌷मरिचि के अनेक पुत्रो मे एक थे कश्यप ऋषि ।
🌷कश्यप के अनेक पुत्रो मे से एक थे विवस्वान मनु जिसे सूर्य के समान होने के कारण सूर्य कहा गया ।
🌷विवस्वान के अनेक पुत्रो मे एक थे वैवस्वत मनु।
🌷और इन्ही ने मनुस्मृति बनाई।
🌷और इन्ही ने वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया ।

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वैदिक काल में जाति व्यवस्था नही थी,कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी।
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🌷उस काल में शिक्षा आरण्यको (जंगल) मे होती थी और हर नागरिक अपने पुत्र को पांच वर्ष पूरा होने पर शिक्षा के लिए इन आरण्यक मे स्थित आवासीय गुरूकुलों में भेजता था,विधार्थियों से कोइ शुल्क नहीं लिया जाता था ये सब के लिए ब्रह्मचर्य पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे।
🌷हर बालक के लिये यहां शिक्षा लेना आवश्यक था चाहे राजा हो या रंक।
🌷यहां गुरूकुल मे हर विद्यार्थी की बुद्धि व रूचि के अनुसार निशुल्क शिक्षा दी जाती थी।
🌷यहां दी गयी शिक्षा के अनुसार गुरूकुल का कुलपति छात्र को वर्ण प्रदान करता था।
🌷चार वर्ण मे जिन छात्रो की रूचि ज्ञान विज्ञान में रही और जिन्होने वेद सीखा ,उन्हे कुलपति ब्राह्मण की उपाधि देता था।
🌷जिन्होने अस्त्र शस्त्र विद्या सीखी उन्हे क्षत्रिय की उपाधि दी जाती थी ।
🌷जिन्होने व्यवसाय,पशुपालन या कृषि सीखी,उन्हे वैश्य की उपाधि दी जाती थी।
🌷जो कुछ नहीं सीख पाते थे उन्हे इन तीन वर्ण की सेवा व शिल्प सिखाकर शूद्र की उपाधि दी जाती थी।
🌷ध्यान रहे ब्राह्मण का पुत्र शिक्षा के बाद शूद्र बन सकता था और शूद्र का योग्य पुत्र शिक्षा पाकर ब्राह्मण बन सकता था।

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वैदिक काल में छात्र की योग्यता व ज्ञान के अनुसार वर्ण मिलता था जो कि पैत्रिक नही था।
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🌷हर छात्र जो शिक्षा ग्रहण करता था वही गृहस्थ जीवन में कर्म या व्यवसाय करता था और वही उसका वर्ण था।
🌷बाद के काल में ब्राह्मणो या गरूकुलो के कुलपतियों के नैतिक पतन और अपने पुत्र को ब्राह्मण वर्ण में बनाये रखने की इच्छा ने इस वर्ण व्यवस्था को जाति मे बदल कर पैत्रिक कर दिया।
🌷उदाहरण के लिए राजा दशरथ के पुत्र मोह के बाद भी दशरथ को राम व अन्य भाइयों को शिक्षा के लिए विश्वामित्र ऋषि के साथ भेजना पड़ा
🌷बाद के काल में द्रोणाचार्य ने धृतराष्ट्र के यहां नौकरी करते हुए पान्डओ व कौरवो को शिक्षा दी और एकलव्य को वनवासी होने के कारण शिक्षा देने से मना कर दिया ,ताकि वह क्षत्रिय न बन जाये।
🌷इससे सिद्ध होता है कि शिक्षको ने बाद में अपना पतन कर लिया था।
🌷जाति स्थान से बनती हैं जैसे अरब मे रहने वाले अरब जाति,जर्मनी में रहने वाले जर्मन जाति।
🌷इसी प्रकार भारत में रहने वाले आर्य जाति कहे गए।
🌷बाद में आर्य संस्कृति उत्तर में सिन्धु नदी के तट तक फैली और अरब आदि जातियो ने सिन्धु नदी के दक्षिण मे रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा और पश्चिम यूरोप की ओर रहने वाले लोगों ने इन्ड जाति कहा ।
🌷इस नाते इस भूभाग मे रहने वाले सभी हिन्दू या आर्य जाति है चाहे वह कोई भी मत माने :- 

हमे जाति (Race) और वर्ण मे अन्तर समझना चाहिये ।
                            

Monday, 24 September 2018

गाय, ब्राह्मण, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी इन्सान, निर्लोभी और दानी मनुष्य इन सात की वजह से पृथ्वी टिकी हुई है

आप हम जिस भवन में रहते है उस भवन का आधार उसके स्तम्भ है।

ठीक उसी प्रकार से विचार किया जाए कि हम जिस पृथ्वी पर रहते है उसका आधार या स्तम्भ क्या है,
जिस पर वह टीकी है?

तो इसका उत्तर एक श्लोक में मिलता है l

गोभिर्विप्रैःच वेदैश्च सतीभिःसत्यवादिभिःl

अलुब्धै र्दानशीलैश्च सप्तभि र्धार्यते महीll

इसके अनुसार पहला स्तम्भ है

गौ माता गाय पर पृथ्वी टीकी है और गायो का विलोप हो रहा है!

दूसरा है ब्राह्मण
गुरुदेव कहते है की ब्राह्मणों का भी विलोप हो रहा है,मनुवादी कहकर इन्हें कलुषित दृष्टि से देखा जाता है।

तीसरा है वेद
मानवजन जब अश्लील मनोरंजन को सभ्यता की सीमा में परिभाषित करने लगे और वेदों का विलोप न हो संभव नही l

चौथा स्तम्भ है सती जिनका भी विलोप हो रहा हैl

पांचवा स्तम्भ है सत्यवादी आज से चालीस - पचास वर्ष पूर्व तक व्यक्ति सच बोला करते थेl
जीवनभर में कोई गहन विपत्ति आ जाए और राजा बलि जैसा धैर्य न हो तब एक दो झूठ कहते थे।
पर आजकल का व्यक्ति स्वाभाव से झूठ बोलता है

छटवां स्तम्भ है निर्लोभी आजकल बिना लोभ के कोई कार्य ही नही होता l

सातवाँ स्तम्भ है दानशील
राष्ट्र की रक्षा हेतु दानाशिलो का विलोप हो रहा है।

ऐसे में आप स्वयं ही विचार करें कि यदि किसी भवन के स्तम्भ ही नही रहेंगे तब वह टिकेगा कैसे?

क्योंकि गाय, ब्राह्मण, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी इन्सान, निर्लोभी और दानी मनुष्य
इन सात की वजह से पृथ्वी टिकी हुई है....ll

ll हर हर महादेव ll

श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज

Saturday, 22 September 2018

संघ के बारे में और शाखा में गायी जाने वाली प्रार्थना

आरएसएस शाखा में नित्य गाई जाने वाली प्रार्थना का हिंदी रूपांतर। (उन समस्त लोगो के लिए जो संघ के बारे में और शाखा में गायी जाने वाली प्रार्थना के बारे में जानने को उत्सुक हैं)

हे प्यार करने वाली मातृभूमि ! मैं तुझे सदा नमस्कार करता हूँ। हे हिन्दू भूमि! तूने मेरा सुख से पालन पोषण किया है। हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ।

हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दुराष्ट्र के सुपुत्र तुझे आदर सहित प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी हैं। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। हे प्रभु ! हमें ऐसी शक्ति दे जिसे विश्व में
कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये और ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये।

उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव एवं श्रेष्ठतम साधन हैं। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अन्तःकरणों में सदैव जागती रहे। तेरी कृपा से हमारी विजयशालीनी संगठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो।
।।भारत माता की जय।।

Friday, 17 August 2018

शिवताण्डवस्तोत्रम्

🍂🍂।।शिवताण्डवस्तोत्रम्।।🍂🍂

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जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलंब्यलम्बिताम् भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्व्यम् चकार चण्डताण्डवम् तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।
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जटाकटाह सम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ।।२।।
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धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।३।।
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जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतम् बिभर्तु भूतभर्तरि ।।४।।
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सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणीविधुसराङ्घ्रिपीठभुः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायताम् चकोरबन्धुशेखरः।।५।।
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ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकम् नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरम् महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः।।६।।
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करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्जवलद् धनञ्जयाहुतिकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।
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नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत कुहुनिशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः।।८।।
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प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा वलम्बिकण्ठकन्दलीरूचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।९।।
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अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्धकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।१०।।
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जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमीद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः।।११।।
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दृषद्विचित्रतलपयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयो: सुहृद्विपक्षपक्षयो। तृणारविन्द चक्षुषो: प्रजामहिमहेन्द्रयो: सम्प्रवर्तिकः कदा सदा शिवम् भजाम्यहम्।।१२।।
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कदानिलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मति: सदा शिरस्थ मञ्जलींवहन्।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।
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इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्।।१४।।
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पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भु:।।१५।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
।।इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डव स्त्रोतम् सम्पूर्णम्।।
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🙌नमः पार्वती पतये हर हर हर महादेव🙌

Saturday, 4 August 2018

आप सिर्फ हिन्दू हैं ! एक रहें सशक्त रहें !

सोचियेगा अवश्य

बनिया कंजूस होता है,
नाई चतुर होता है,
ब्राह्मण धर्म के नाम पे बेबकूफ बनाता है,
राजपूत अत्याचारी होते हैं,
चमार गंदे होते हैं,
जाट और गुर्ज्जर बेवजह लड़ने वाले होते हैं,
मारवाड़ी लालची होते हैं........

और ना जाने ऐसी कितनी परम ज्ञान की बातें सभी हिन्दुओं को आहिस्ते - आहिस्ते सिखाई गयी !

नतीजा हीन भावना, एक दूसरे जाती पर शक, आपस में टकराव होना शुरु हुआ और अंतिम परिणाम हुआ की मजबूत, कर्मयोगी और सहिष्णु हिन्दू समाज आपस में ही लड़कर कमजोर होने लगा !

उनको उनका लक्ष्य प्राप्त हुआ ! हजारों साल से आप साथ थे...आपसे लड़ना मुश्किल था..अब आपको मिटाना आसान है !

आपको पूछना चाहिए था की अत्याचारी राजपूतों ने सभी जातियों की रक्षा के लिए हमेशा अपना खून क्यों बहाया ?
आपको पूछना था की अगर चमार, दलित को ब्राह्मण इतना ही गन्दा समझते थे तो बाल्मीकि रामायण जो एक दलित ने लिखा उसकी सभी पूजा क्यों करते हैं ? और चाणक्य ने चन्द्रगुप्त ही क्यूँ चुने??

अपने नहीं पूछा की आपको सोने का चिड़ियाँ बनाने में मारवाड़ियों और बनियों का क्या योगदान था ?
जिस डॉम को आपने नीच मान लिया, उसी के दिए अग्नि से आपको मुक्ति क्यों मिलती है ?
जाट और गुर्जर अगर लड़ाके नहीं होते तो आपके लिए अरबी राक्षसों से कौन लड़ता ?

जैसे ही कोई किसी जाति की कोई मामूली सी भी बुरी बात करे, टोकिये और ऐतराज़ कीजिये !

याद रहे, आप सिर्फ हिन्दू हैं !
एक रहें सशक्त रहें !
मिलजुल कर मजबूत भारत का निर्माण करें !

Wednesday, 7 February 2018

गुप्त नवरात्र रहस्य

गुप्त नवरात्र रहस्य
🌀रहस्यों का रहस्य गुप्त नवरात्र👣आओ जानें क्यों कहते हैं इसे गुप्त नवरात्र
माघ गुप्त नवरात्र देवशयनी जब भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होतें हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं उस समय पृथ्वी पर रूद्र वरुण यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है सतयुग में चैत्र नवरात्रत्रेता में आषाढ़ नवरात्र द्वापर में माघ कलयुग में आश्विन की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है मार्कंडेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में दैत्य राक्षस दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर के चारों वेद प्राप्त कर लिए तब वह उपद्रव करने लगा वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही देवताओं ने मां पराम्बा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध कियादस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से 'गुप्त नवरात्र' मनाया जाने लगा इस गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है यह समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है साथ ही संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना भी की जाती है यह साधनाएं बहुत ही गुप्त स्थान पर या किसी सिद्ध श्मशान में की जाती हैं दुनियां में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्रयंबकेश्वर (नासिक) और
उज्जैन स्थित चक्रतीर्थ श्मशान
गुप्त नवरात्रि में यहां दूर-दूर से साधक गुप्त साधनाएं करने यहां आते हैं नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजििनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है, वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है
शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं इन्हीं कारणों से माघ मास की नवरात्रि में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया गया है गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते “सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥”

प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र

गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई,और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं,जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं,जुआरी है,लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं,उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई। पति सन्मार्ग पर आ गया,और जीवन माता की कृपा से खिल उठा यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें। तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है पाकिस्तान स्थित हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए। गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है हां, इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है ।धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता हैआयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है 💫
देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं👣
नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में 👣दस महाविद्याओं की साधना की जाती है
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक👤 महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है 🌏पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली 🌐गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है ❄ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है जय माता दी