🚣🎪🚣हर हर गंगे 🚣🎪🚣
🚣मन चंगा तो कठौती में गंगा🚣
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एक बार की बात है। एक परिवार में पति पत्नी एवं बहू बेटा याने चार प्राणी रहते थे । समय आराम से बीत रहा था । चंद वर्षो बाद सास ने गंगा स्नान करने का मन बनाया । वो भी अकेले पति पत्नी । बहू बेटा को भी साथ ले जाने का मन नहीं बनाया । उधर बहू मन में सोच विचार करती है कि भगवान मेंने ऐसा कौनसा पाप किया है जो में गंगा स्नान करने से वंचित रह रही हूँ। सास ससुर गंगा स्नान हेतु काशी के लिए रवाना होने की तैयारी करने लगे तो बहू ने सास से कहा कि माँ सा आप अच्छी तरह गंगा स्नान एवं यात्रा करिएगा । इधर घर की चिंता मत करिएगा । मेरा तो अभी अशुभ कर्म का उदय है वरना में भी आपके साथ चलती ।
सारी तैयारी करके दोनों काशी के लिए रवाना हुए। मन ही मन बहू अपने कर्मों को कोस रही थी, कि आज मेरा भी पुण्य कर्म होता तो में भी गंगा स्नान को जाती। खेर मन को ढाढस बंधाकर घर में रही। उधर सास जब गंगाजी में स्नान कर रही थी । स्नान करते करते घर में रखी अलमारी की तरफ ध्यान गया और मन ही मन सोचने लगी कि अरे अलमारी खुली छोडकर आगई कैसी बेवकूफ औरत हूँ बंद करके नहीं आई । पीछे से बहू सारा गहना निकाल लेगी । यही विचार करते करते स्नान कर रही थी कि अचानक हाथ में पहनी हुई अँगूठी हाथ से निकल कर गंगा में गिर गई । अब और चिंता बढ़ गई की मेरी अँगूठी गिर गई । उसका ध्यान गंगा स्नान में न होकर सिर्फ घर की अलमारी में था । उधर बहू ने विचार किया कि देखो मेरा शुभ कर्म होता तो में भी गंगा जी जाती । सासु माँ कितनी पुण्यवान है जो आज गंगा स्नान कर रही है । ये विचार करते करते एक कठौती लेकर आई और उसको पानी से भर दिया और सोचने लगी सासु माँ वहाँ गंगा स्नान कर रही है और में यहाँ कठौती में ही गंगा स्नान कर लूँ । यह विचार करके ज्योंही कठौती में बैठी तो उसके हाथ में सासु माँ के हाथ की अँगूठी आ गई और विचार करने लगी ये अँगूठी यहाँ कैसे आई ये तो सासु माँ पहन कर गई थी । इतना सब करने के बाद उसने उस अँगूठी को अपनी अलमारी में सुरक्षित रख दी और कहा कि सासु माँ आने पर उनको दे दूँगी। उधर सारी यात्रा एवं गंगा स्नान करके सास लौटी तब बहू ने उनकी कुशल यात्रा एवं गंगा स्नान के बारे में पूछा -
तो सास ने कहा कि बहू सारी यात्रा एवं गंगा स्नान तो की पर मन नहीं लगा ।
बहू ने कहा कि क्यों माँ ? मेंने तो आपको यह कह कर भेजा था कि आप इधर की चिंता मत करना में अपने आप संभाल लूँगी ।
सास ने कहा कि बहू गंगा स्नान करते करते पहले तो मेरा ध्यान घर में रखी अलमारी की तरफ गया और ज्योंही स्नान कर रही थी कि मेरे हाथ से अँगूठी निकल कर गंगाजी में गिर गई। अब तूँ ही बता बाकी यात्रा में मन कैसे लगता।
इतनी बात बता ही रही थी कि बहू उठकर अपनी अलमारी में से वह अँगूठी निकाल सास के हाथ में रख कर कहा की माँ इस अँगूठी की बात कर रही है क्या ?
सास ने कहा - हाँ ! यह तेरे पास कहाँ से आई इसको तो में पहन कर गई थी । और मेरी अंगुली से निकल कर गंगाजी मे गिरी थी ।
बहू ने जबाब देते हुई कहा कि - माँ जब गंगा स्नान कर रही थी तो मेरे मन में आया कि देखो माँ कितनी पुण्यवान है जो आज गंगा स्नान हेतु गई । मेरा कैसा अशुभ कर्म आड़े आरहा था जो में नहीं जा सकी । इतना सब सोचने के बाद मेंने विचार किया कि क्यों में यही पर कठौती में पानी डाल कर उसको ही गंगा समझकर गंगा स्नान कर लूँ । जैसे मेंने ऐसा किया और कठौती में स्नान करने लगी कि मेरे हाथ में यह अँगूठी आई । में देखा यह तो आपकी है और यह यहाँ कैसे आई । इसको तो आप पहन कर गई थी। फिर भी में आगे ज्यादा न सोचते हुई इसे सुरक्षित मेरी अलमारी में रख दी ।
सास ने बहू से कहा - बहू में बताती हूँ कि यह तुम्हारी कठौती में कैसे आई ।
बहू ने कहा - माँ कैसे ?
सास ने बताया - बहू देखो "मन चंगा तो कठौती में गंगा" । मेरा मन वहाँ पर चंगा नहीं था । में वहाँ गई जरूर थी परंतु मेरा ध्यान घर की आलमारी में अटका हुआ था और मन ही मन विचार कर रही थी की अलमारी खुली छोडकर आई हूँ कहीं बहू ने आलमारी से मेरे सारे गहने निकाल लिए तो। तो बता ऐसे बुरे विचार मन में आए तो मन कहाँ से लगनेवाला और अँगूठी जो मेरे हाथ से निकल कर गिरी वह तेरे शुद्ध भाव होने के कारण तेरी कठौती में निकली ।
इस कथा का सार यह ही है कि जीवन में पवित्रता निहायत जरूरी है। वर्तमान में हर प्राणी का मन अपवित्र है, हर व्यक्ति का चित्त अपवित्र है। चित्त और चेतन में काम, क्रोध, मोह, लोभ जैसे विकार इस तरह हावी है कि हम उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं । उस विकृति के कारण हमारा जीना बहुत दुर्भर हो रहा है। बाहर की गंदगी को हम पसंद नहीं करते, वह दिखती है, तत्क्षण हम उसे दूर कने के प्रयास में लग जाते हैं । हमारे भीतर में जो गंदगी भरी पड़ी है उस और हमारा ध्यान नहीं जाता है। आज जिस पवित्रता की बात की जानी है, उस पवित्रता का सम्बद्ध बाहर से नहीं है, भीतर की पवित्रता से है।
Monday, 19 December 2016
मन चंगा तो कठौती में गंगा
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