Sunday, 29 January 2017

गो गव्य ही सर्वोत्तम आहार हैं।

गो गव्य ही सर्वोत्तम आहार हैं।

यज्ञ में काम लिया जाने वाला घृत केवल और केवल गो-घृत ही होना चाहिये, तभी देवता उसको ग्रहण करेंगे। बाजारू घृत जो कि चर्बीयुक्त हो सकता है या फिर अन्य पशुओं का घृत जो कि अशुद्ध माना जाता है, देवता नहीं दानव ग्रहण करेंगे। उससे देव शक्ति की बजाय दानवी शक्ति का पोषण होगा। परिणाम हमारे लिये निश्चित उल्टा ही होगा। अतः यज्ञ में केवल गो-गव्यों का ही प्रयोग करना चाहिये। शास्त्र विरुद्ध किया गया कार्य पूरी सृष्टि के लिये हानिकारक होता है। शास्त्र में जहाँ भी दूध, दही, छाछ, मक्खन, घृत आदि उल्लेख किया गया है वो केवल गाय के गव्य ही हैं, क्योंकि उस समय भैंस, जर्सी, हॉलिस्टीयन जैसे पशुओं का व्यवहार कहीं भी शास्त्र में आया ही नहीं है। बीमारियों से बहुत दुःखी होने के बाद भी आम आदमी में यहाँ तक कि बुद्धिजीवियों और बड़े-बड़े कई साधु-संतों में भी सजगता देखने में नहीं आ रही है। दूध और घी के विषय में तो वे बिल्कुल लापरवाह या अनभिज्ञ से नजर आ रहे हैं। हृदयघात और ब्लोकेज में कॉलेस्ट्राल मुख्यतः गोघृत के अलावा खाया गया घृत है, जिससे हमारा पाचन तंत्र पचा नहीं पाया। इसके अलावा गुणों में गाय का दूध सात्विक, भैस का राजसी व जर्सी-हॉलिस्टीयन का तामसी होता है। इनको खाने से इनके जैसा ही हमारा मन मस्तिष्क और हृदय बनता है। सफेद रंग का हरेक पदार्थ दूध नहीं होता है। वर्तमान में गाय का जो त्याग और तिरस्कार है वो मुख्यरूप से दूध की मात्रा को लेकर किया जा रहा है। वजह केवल व्यापार। बेचने वाला तो रुपये कमाने के लिये ऐसा कर रहा है, पर खरीददार दूध के प्रति शिक्षित नहीं होने के कारण शुद्ध गाय के दूध की माँग नहीं कर रहे हैं। लगातार अनदेखी से हमारे देश में गायों की नस्ल में भारी गिरावट आई है, जिससे वे कम दूध दे रही है। देश में दूध की माँग केवल दो फालतू के कार्यों हेतु है- 1. चाय और 2. मिठाई। अगर लोग चाय पीना छोड़ दें, जो कि जीवन निर्वाह हेतु कतई आवश्यक नहीं है, तो दूध की खपत एकदम गिर जायेगी। जो मिठाई वर्तमान में लोग खा रहे हैं, उससे स्वास्थ्य को लाभ की बजाय हानि अधिक हो रही है, केवल जीभ का स्वाद लेने के लिये बीमारी का घर खा रहे हैं। ऐसी मिठाई का भी यदि त्याग कर दें तो दूध की खपत और घट जायेगी। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम रह गयी है जो स्वास्थ्य के लिये दूध पीते हैं। बच्चे अभी भी दूध जरूर पीते हैं। जब माँग कम होगी तो उसकी पूर्ति केवल गायों से हो जायेगी। इससे लाभ यह होगा कि हमें वाकई में पीने को दूध मिलेगा। हमारा स्वास्थ्य और करोड़ों का खर्च बच जायेगा। चाय और मिठाई के लिये अधिक दूध की माँग ने गाय को घर से बाहर कर दिया और उसे बूचड़खानों की और धकेल दिया। कुछ सज्जन मेरे यहाँ से गाय का शुद्ध दूध ले गये और अपने बच्चों को पिलाया। मैंने 10 दिन बाद उन बच्चों को पूछा कि गाय का दूध कैसा लग रहा है? उनका उत्तर थ कि अंकलजी हमने जीवन में व्हाइट दूध ही पहली बार पीया है। अब तक स्वाद न होने के कारण हम बोर्नवीटा मिलाकर कलर्ड (रंगीन) दूध ही पी पाते थे। अब तो वे गाय के दूध के अलावा दूध पीने को तैयार ही नहीं हैं। अकबर ने एक बार बीरबल को पूछा कि सबसे अच्छा दूध किसका होता है। हाजिर जवाब बीरबल ने तपाक से उत्तर दिया भैंस का। अकबर को बीरबल से यह उम्मीद कतई नहीं थी। वो उसे हिन्दूवादी और गाय का प्रबल पक्षधर समझता था, इसलिये बीरबल के इस उत्तर से वह आश्चर्यचकित था। अकबर यह अच्छी तरह जानता था कि बीरबल कभी गलत उत्तर नहीं दे सकता, पर आज ऐसा कैसे हुआ? अकबर ने अगला प्रश्न किया कि- कैसे और क्यों? बीरबल ने उत्तर दिया -जहाँपनाह, दूध तो केवल दो ही जानवर देते हैं। एक भैंस और दूसरी बकरी। इनमें भैंस का ठीक है। महाराज गाय दूध नहीं, साक्षात् अमृत देती है। मैं उसे दूध की श्रेणी में नहीं गिना सकता। अतः मित्रों, मात्रा नहीं दूध की गुणवत्ता देखें। सफेद जहर से बचें। आज इतना ही । जय गोमाता ! जय गोपाल !

गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं।

गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं।

नवग्रहों की शांति के संदर्भ में गाय की विशेष भूमिका होती है कहा तो यह भी जाता है कि गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं। शनि की दशा, अंतरदशा, और साढेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्य को कष्ट मुक्त कर देता है। 2. मंगल के अरिष्ट होने पर लाल वर्ण की गाय की सेवा और निर्धन ब्राम्हण को गोदान मंगल के प्रभाव को क्षीण करता है। 3. बुध ग्रह की अशुभता निवारण हेतु गौवों को हरा चारा खिलाने से बुध की अशुभता नष्ट होती है। 4. गाय की सेवा, पूजा, आराधना, आदि से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुखमय होने का वरदान भी देती हैं। 5. गाय की सेवा मानसिक शांति प्रदान करती है

Saturday, 28 January 2017

भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र

भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र

हर इंसान को ज़ीने के लिए कम से कम 3 चीजों की जरूरत है. हवा, पानी और खाना. स्वच्छ हवा रही नहीं (पेट्रोल, डीज़ल), पीने का पानी मुफ्त मिलता नहीं शुद्धता की बात तो अलग है (रासायनिक खेती, ग्लोबल वार्मिंग, गिरता पानी का स्तर), खाने में भी जहर आ चूका है (रासायनिक खेती से भी और मिलावट करने वाले मुनाफाखोरी से भी). भारत इन तीनों समस्या से जूझ रहा है. भारत की कुछ प्रमुख समस्याएँ :- 1. किसानों की आत्महत्या. (कारण हर चीज बाहर से खरीदना रासायनिक खेती में, जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, ट्रैक्टर और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना.) 2. बढ़ती महंगाई. (कारण पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स) 3. गिरती अर्थव्यवस्था. (घर की जगह विदेशी से प्यार किसी भी वजह से) 4. बढ़ती गरीबी. (बढ़ती महंगाई, पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स) 5. बिजली की कमी. 6. पानी की कमी. इन सबका एक मुख्य कारण है, सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, दवाइयां, पेट्रोल, गैस. आप इसको इस तरह समझिये, की आपने अपने घर में खाना बनाया तो खाना कितना सस्ता पड़ता है, और जब आप रोज बाहर से खाना खरीदोगे तो खाना कितना महंगा पड़ेगा. रोज रोज बाहर से खरीदना मतलब अपनी सेहत भी खराब करना और पैसे भी लुटाना. इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल न करके, जब पेट्रोल, खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्द में ही जायेगा. आजादी के समय भारत का रुपया 1 अमरीकन डालर के बराबर था. 1988 में भी उदारीकरण की नीतिओ से पहले तक भारत का रुपया 1 डालर के मुकाबले 8 रुपया था. यानी 41 साल आजादी में 8 गुना गिरावट और उदारीकरण के माहौल में 25 सालों में 8 गुना गिरावट से रुपया 62 रुपये प्रति डालर रह गया. उदारीकरण माने भारत ने अपने बाजार को खोल दिया, और हर चीज विदेशी यहाँ आकर बिकने लगी. नतीजा आपके सामने है. 1917 तक भारत डालर के मुकाबले 10 गुना मजबूत था माने 1 रुपया 10 डालर के बराबर था. आजादी के इन 66 सालों में हमारी कौन सी सरकार ने किस के लिए क्या काम किया, यह सोचने का विषय है. भारत के लिए कुछ किया ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा. अभी भी देर नहीं हुई है. 1. गैस, पेट्रोल और बिजली मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है. आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा. मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से जैसे देसी गाय का गोबर. भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए की वह मीथेन गैस का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करें. भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन 50 करोड़ का है, जो 25 करोड़ टन का गोबर उत्पादन करता है. इसको इस्तेमाल करके हम न सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं. LPG, केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों को पूरी तरह से मीथेन गैस से हटाया जा सकता है. मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जो की भारत के सारे गाँवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जो कि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत का खर्च होने वाला विदेशी मुद्रा को भी बचाएगा. उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने स्थापित किया है की एक गाय एक साल में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है. कैलोरी मान तालिका में एक किलो मीथेन गैस, एक किलो पेट्रोल, रसोई गैस, मिट्टी का तेल या डीज़ल के लिए बराबर ऊर्जा सामग्री में है. रसोई गैस आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है. एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है. यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है. पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता को 9.2 करोड़ गायों के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती हैं. सीएनजी की तरह, मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में ऑटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारा पेट्रोल की खपत (2003-04) में आठ लाख टन था. एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करता है. इस धारणा पर, हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन ) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं. बिजली एक जनरेटर 200 ग्राम पेट्रोल लेकर एक किलोवाट / घंटे (kWh) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करता है. ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति विद्युत ऊर्जा की खपत प्रतिवर्ष 112 किलोवाट प्रति घंटा है. 74 करोड़ की हमारी ग्रामीण आबादी की विद्युत ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक और 8.5 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. गोबर से मीथेन गैस प्राप्त करना काफी आसान है. गोबर गैस संयंत्र 20,000 रुपये से 1,00,000 रुपये के बीच की लागत में और तीन घन मीटर से 270 क्यूबिक मीटर कैपेसिटी, और विभिन्न आकारों में उपलब्ध हैं. एक कंप्रेसर पोर्टेबल सिलेंडर में इस मीथेन गैस को निकालने और भरने के लिए चाहिए. ये मीथेन गैस सिलेंडरों से खाना पकाने के लिए, या ऑटोमोबाइल और दो पहिया वाहन में इस्तेमाल किया जा सकता है. यानी कुल मिलकर 10 करोड़ गाय रसोई गैस, 20 करोड़ गाय पेट्रोल और 10 करोड़ गाय ग्रामीण बिजली के लिए काफी होगी. सिर्फ 50 करोड़ गाय से ही भारत स्वावलंबी बन सकता है. 2. कृषि खाद (फर्टिलाइजर) और कीटनाशक किसानों की सारी समस्या का समाधान है सिर्फ देसी गाय. बीज सिर्फ देसी ही ख़रीदे (पहली बार) खेती करने के लिए देसी बीज खरीदने होंगे. दूसरी बार किसान अपने बीजो से ही खेती करेगा, बीज का खर्चा बचेगा. संकर यानि हाइब्रिड बीज से बीज नहीं बनते. आजकल जी म (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीज बाज़ार में उपलब्ध हैं, जो की न सिर्फ सेहत के दुश्मन है, बल्कि इन बीजो से आप बीज पैदा नहीं कर सकते. इन बीजो को बनाने वाले अपनी दूकान निरंतर चलाना चाहते हैं इसलिए वह नहीं चाहते की आप अपने बीज खुद बनाये. जो ये हाइब्रिड बीज अपने खेत में डालते हैं उन्हें हर हाल में यूरिया, डी ऐ पी जैसे जेहरीले रसायन भी खरीदने पड़ेंगे नहीं तो कुछ भी पैदा नहीं होगा. सिर्फ देसी बीज ही ले. दूसरी फसल से किसान का बीज का खर्चा ख़तम. यूरिया, डी ऐ पी की जगह डाले देसी गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद. 1 एकड़ खेत में सिर्फ 10 किलो देसी गाय का गोबर, 5-7 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गुड, 1 किलो आटा /बेसन, 1 मुठ्ठी पुराने पेड़ की मिटटी चाहिए. इन सबको 200 लीटर पानी में मिलाये. 48 घंटे छांव में रखें. उसके बाद सिंचन के पानी के साथ 1 एकड खेत में लगाये. यूरिया, डी ऐ पी का खर्चा पहली फसल से ही ख़तम. थोडा सा खर्चा गुड और बेसन लाने में होगा. कीटनाशक के लिए गोमूत्र 5 लीटर 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ खेत में छिड़क सकते हैं. इसी तरह से अलग अलग बिमारिओ या कीटों के लिए अलग अलग देसी प्राकृतिक दवाएं हैं. 3. किसानो की आत्महत्या बंद होगी. खेती का खर्चा कम होगा, उपज कम नहीं होगी, उल्टा धीरे धीरे बढ़नी शुरू होगी. 4. जहर और केमिकल रहित खाने से लोगों का स्वस्थ्य सुधरेगा, जिससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, सुगर और हार्ट अटैक जैसी गंभीर जानलेवा बिमारिओ से बचाव होगा. दवाइयों का खर्चा कम होगा. दवाइयों पर खर्च होने वाला भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार भी बचेगा. रूपये की अंतररास्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ेगी, जिसका सीधा फायदा महंगाई और गरीबी कम करेगा. 5. इस खेती को करने से पानी का जलस्तर बढेगा, पानी दूषित नहीं होगा. 6. हवा शुद्ध होगी क्योंकि पेट्रोल डीज़ल की जगह सब कुछ सी न जी से चेलगा. मतलब गाय है तो भारत है और भारत है तो विश्व है… इसलिए भारतीय समाज और संस्कृति सिर्फ और सिर्फ गाय को गौ माता का दर्जा देता है… हमको यह समझने में बहुत समय लग गया. लेकिन अगर हम आज भी प्रण ले ले की गाय को बचाना है क्योंकि गाय ही भारत को बचा सकती है.

Friday, 27 January 2017

गौ-महिमा और गौ-रक्षाकी आवश्यकता


            ।। जय सियाराम , वन्दे गौ मातरम् ।।
-----   गौ-महिमा और गौ-रक्षाकी आवश्यकता _ 2   -----
परन्तु हाय! वे दिन अब चले गये । हिन्दू- जाति अब दुर्बल हो गयी है। हम अपनी स्वतन्त्रता, अपना पुरुषत्व, अपनी धर्मप्राणता, ईश्वर और ईश्वरीय कानूनमें विश्र्वास, शास्त्रोंके प्रति आदरबुद्धि, विचार- स्वातन्त्र्य, अपनी संस्कृति एवं मर्यादाके प्रति आस्था - सब कुछ खो बैठे हैं ।
आज हम आपस की फूट एवं कलह के कारण छिन्न-भिन्न हो रहे हैं । हम अपनी संस्कृति एवं धर्म पर किये गये प्रहारों एवं आक्रमणों को व्यर्थ करने के लिये संघटित नहीं हो सकते । हम अपनी जीवनी शक्ति खो बैठे हैं ।
मूक पशुओंकी भाँति दूसरोंके द्वारा हाँके जा रहे हैं । राजनीतिक गुलामी ही नहीं, अपितु मानसिक गुलामीके भी शिकार हो रहे हैं। आज हम सभी बातों पर पाश्र्चात्त्य दृष्टिकोणसे ही विचार करने लगे हैं ।
यही कारण है कि हमारी इस 'पवित्र भारत भूमि में' प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों की संख्या में गौमाता और उसके पवित्र वंश का संहार किया जा रहा हैं , और हम इसके विरोध में अँगुली तक नहीं उठाते ।
आज हम महाराजा दिलीप और महाधनुर्धारी अर्जुन के इतिहास केवल पढते और सुनते हैं, उनसे हमारी नसों में जोश नहीं भरता। हमारी नपुंसकता सचमुच दयनीय है !
  
             ।। गौवंश बचाओ , भारत बचाओ ।।
                  ।। गौ चराण , हमारे प्राण ।।
                ।। जय गोमाता , जय गोपाल ।।

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई पढ़े एक ज्ञानवर्धक लेख

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई। पढ़े एक ज्ञानवर्धक लेख।
कुछ अति बुद्धिमान (सेकुलर व मुस्लिम) लोग कहते हैं की हिन्दू शब्द फारसियों की देन है । क्यूंकि इसका उल्लेख वेद पुराणों में नहीं है।
मेरे सनातनी भाईयों, इन जैसे लोगों का मुंह बंद करने के लिये दास आपके सन्मुख हजारों वर्ष पूर्व लिखे गये सनातन शास्त्रों में लिखित चंद श्लोक (अर्थ सहित) प्रमाणिकता सहित बता रहा हूँ । आप सब सेव करके रख लें, और मुझसे यह सवाल करने वाले महामूर्ख सेकुलर को मेरा जवाब भी देख लें.
1-ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है......!
"हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
(अर्थात हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं)
2- सिर्फ वेद ही नहीं.... बल्कि.. मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है.....
"हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये ।"
(अर्थात... जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं)
3- और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है....!
"हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।"
(अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है )
4- पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है....!
"हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं । हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते ।।"
(अर्थात जो अपने तप से शत्रुओं का दुष्टों का और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है )
5- माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है....!
"ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य: ।
गौभक्तो भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।
(अर्थात.... वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, सदैव गौपालक रहे तथा बुराईयों को दूर रखे, वो हिन्दू है )।
6- केवल इतना ही नहीं हमारे ऋगवेद ( ८:२:४१ ) में विव हिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन मिलता है । जिन्होंने 46000 गौमाता दान में दी थी.... और ऋग्वेद मंडल में भी उनका वर्णन मिलता है ।
7- ऋग वेद में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जिनका नाम सैन्धव था । जो मध्यकाल में आगे चलकर "हैन्दव/हिन्दव" नाम से प्रचलित हुए, जिसका बाद में अपभ्रंश होकर हिन्दू बन गया...!!
8- इसके अतिरिक्त भी कई स्थानों में हिन्दू शब्द उल्लेखित है....।।
इसलिये गर्व से कहो, हाँ हम हिंदू थे, हिन्दू हैं और सदैव सनातनी हिन्दू ही रहेंगे ॥

आयुर्वेद चिकित्सा में गाय का महत्व

आयुर्वेद चिकित्सा में गाय का महत्व

सदियो से गौ का महत्व रहा हे। ये सिर्फ न धर्म से जुड़ा हुआ हे पर उसका वैज्ञानिक महत्व भी हे। प्राचीन काल में गौ जिसके पास हो उसको ही संपत्तिवान माना जाता था। यह मान्यता ऐसी ही नहीं थी। आज के विज्ञानं को इस से जोड़े तो सायद हमारे पूर्वजो की दूरद्रष्टि को हम थोडा समज पाये। गाय और हमारा स्वास्थय गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है। यह बीमारों और बच्चों के लिए बेहद उपयोगी आहार माना जाता है। इसके अलावा दूध से कई तरह के पकवान बनते हैं। दूध से दही, पनीर, मक्खन और घी भी बनाता है। गाय का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम भी काम आता है। गाय का गोबर फसलों के लिए सबसे उत्तम खाद है। Dr. Corran Mclachlan back ने 1997 रिसर्च में कहा की देसी गाय का दूध ही श्रेष्ठा हे जिस में प्रोटीन a2 पाया जाता हे और विदेसी गाय का दूध जिसमे प्रोटीन a1 पाया जाता हे वह स्वास्थ्य को कुछ फायदा नहीं करता ऊपर से उसमे bcm7 हे जो स्वास्थय को निचे दिए गए रोग पैदा करता हे। Type 1 diabetes (DM-1).Coronary heart disease (CHD).Autism in children.sudden infant death syndromeSchizophrenia.Asperger’s syndrome.Endocrine dysfunctions like hormone imbalance, endometritis and related infertility problems in women.Digestive distress and leaky gut syndrome. गाय और आयुर्वेद .गाय का दूध सौ बीमारियों का निदान करता है तो गोमूत्र कैंसर सहित 108 बीमारियों में लाभकारी माना जाता है। धार्मिक तौर पर भी पूजा-पाठ के लिए बेहद शुद्ध माना जाने वाले गाय के दूध से गोमूत्र की उपयोगिता ज्यादा है। इसकी कीमत दूध से कहीं अधिक हो गई है। इसकी उपयोगिता वो समझ सकते हैं जो बीमारी के निदान के लिए गोमूत्र से बने अर्क का सेवन करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र, लघु अग्निदीपक, मेघाकारक, पित्ताकारक तथा कफ और बात नाशक है और अपच एवं कब्ज को दूर करता है। इसका उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा में पंचकर्म क्रियाएं तथा विरेचनार्थ और निरूहवस्ती एवं विभिन्न प्रकार के लेपों में होता है। आयुर्वेद में में संजीवनी बूटी जैसी कई प्रकार की औषधियां गोमूत्र से बनाई जाती हैं। गौमूत्र के प्रमुख योग गोमूत्र क्षार चूर्ण कफ नाशक तथा नेदोहर अर्क मोटापा नाशक हैं। गोमूत्र- श्वांस, कास, शोध, कामला, पण्डु, प्लीहोदर, मल अवरोध, कुष्ठ रोग, चर्म विकार, कृमि, वायु विकार मूत्रावरोध, नेत्र रोग तथा खुजली में लाभदायक है। गुल्य, आनाह, विरेचन कर्म, आस्थापन तथा वस्ति व्याधियों में गोमूत्र का प्रयोग उत्तम रहता है। गोमूत्र अग्नि को प्रदीप्त करता है, क्षुधा [भूख] को बढ़ाता है, अन्न का पाचन करता है एवं मलबद्धता को दूर करता है। गोमूत्र से कुष्ठादि चर्म रोग भी दूर हो सकते हैं तथा कान में डालने से कर्णशूल रोग खत्म होता है और पाण्डु रोग को भी गोमूत्र समाप्त करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों का शोधन गोमूत्र में किया जाता है और अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन गोमूत्र के साथ करने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद में स्वर्ण, लौह, धतूरा तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से शुद्ध करने का विधान है। गोमूत्र के द्वारा शुद्धीकरण होने पर ये द्रव्य दोषरहित होकर अधिक गुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते हैं। रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं। आयुर्वेद के अलावा गोमूत्र नील, हैंड वाश, शैंपू, नेत्र ज्योति, घनवटी, सफेद फिनाइल, कर्णसुधा सहित कई उत्पाद बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में तो भारतीय गाय के योगदान को कोई झुठला ही नहीं सकता। हम भारतीय गाय को ऐसे ही माता नहीं कहते। इस पशु में वह ममता है जो हमारी माँ में है। भारतीय गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में भी होता है। अक्सर ह्रदय रोगियों को घी न खाने की सलाह डॉक्टर देते रहते हैं। साथ ही एलोपैथी में ह्रदय रोगियों को दवाई में सोना ही कैप्सूल के रूप में दिया जाता है। यह चिकित्सा अत्यंत महँगी साबित होती है। जबकि आयुर्वेद में ह्रदय रोगियों को भारतीय गाय के दूध से बना शुद्ध घी खाने की सलाह दी जाती है। इस घी में विद्यमान स्वर्ण के कारण ही गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं। गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेकों बीमारियों से दूर रखता है। गौ मूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी सम्बंधित रोगों का उपचार भी संभव है। ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके। , गौ की प्रति श्री कृष्ण भगवान का प्रेम कोण नहीं जानता जिसमे खुद भगवान् गोपाल बन जाते हे। हमारे राष्ट्रपिता आज़ादी की लड़ाई के साथ गौ महत्व हमेसा समजाते रहे और उन्होंने एक बार तो यह किया दिया था की आज़ादी बाद में मिले चलेगा पर गौ हत्या पहले बंध होनी चाहिए। गौ बचेगी तो देश बचेगा। बाबर से लेके औरेंगज़ेब जेसे कट्टर मुसलमान सासक ने भी गौ हत्या प्रतिबन्ध के कानून बनाया था। दक्षिण भारत में हैदर अली और टीपू सुलतान ने भी गौ हत्या प्रतिबन्ध के कानून बनवाया था। 2005 में सुप्रीम कोर्ट के सामने इ सब बात रखके जस्टिस लाहोटी ने भी गौ हत्या बंध हो और न की केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जवाबदारी पर हर एक नागरिक की भी जवाब दारी हे की वे गौ रक्षा करे ऐसा निर्णय दिया।