मनुस्मृति: स्मृतियों में सबसे ऊंचा स्थान मनुस्मृति का है। मनु अपने समय के एक प्रख्यात तत्त्वदृष्टा, धर्मवेता, धर्मनिष्ठ, ऋषि रहे और निश्चय ही मनु अमिर्तोजा (अत्यधिक ज्ञान शक्ति) से सम्पन्न व्यक्ति थे। मनु के धर्मशास्त्र का अस्तित्व तो वैदिक काल से ही रहा है। आचार, व्यवहार, नीति, पारिस्थितिकी, ज्ञान, राजकर्म के इतिहास में मूर्धन्य स्थान रखने वाले स्मृतिकार मनु मानव जाति के आदि पूर्वज थे। ऋग्वेद में मनु को मानव का पिता कहा गया है। यास्क ने निरुक्त में व्यवहार शास्त्र के प्रणेता के रूप में मनु का उल्लेख किया है।
मनुस्मृति वेदों के अत्यधिक निकट है। यह सर्वप्राचीन होने के कारण विशेष सम्मान व महत्त्व प्राप्त करती है। इसके रचयिता मनु है। इसकी सर्वाधिक प्राचीनता और वेदमूलकता के कारण धर्मशास्त्रकारों ने तो यहां तक घोषणा कर दी है कि जो स्मृति मनुस्मृति के विपरीत है वह मान्य नहीं है। मनु का अस्तित्व व उनकी प्रमाणिकता वैदिक काल से सिद्ध है। ऋग्वेद में मनु का उल्लेख अनेक बार हुआ है।1 ऋग्वेद के 18वें मण्डल के 27 से 31 तक के सूक्तों के रचयिता वैवस्वत मनु ही है। इसके अतिरिक्त अनेक धार्मिक व ऐतिहासिक ग्रंथों में मनु का उल्लेख हुआ है।2
मनुस्मृति एक विधिविधानात्मक शास्त्र है। इसमें जहां एक ओर वर्णाश्रम धर्मों के रूप में व्यक्ति एवं समाज के लिए हितकारी धर्मों, नैतिक कत्र्तव्यों, मर्यादाओं, आचरणों का वर्णन है। इसी कारण मनुस्मृति को मानव सभ्यता की सर्वप्रथम विधि-पुस्तक मानी जाती है। मनु व मनुस्मृति के विषय में तैत्तिरीय संहिता में उल्लिखित है कि - मनवै यत्किंचादवत् तद् भैषजम्।।3
वर्तमान मनुस्मृति में 12 अध्याय है कुल 2694 श्लोकों में मनुस्मृति के कलेवर का निर्माण किया गया है। यह धारा प्रवाह शैली एवं परिमार्जित भाषा में लिखी हुई है। इसके 7वें व 8वें अध्याय में राज्यशासन, दण्डविधान, साक्षी आदि का वर्णन विस्तारपूर्वक वर्णित है।
आज भी हिन्दू कोड बिल एवं संविधान का प्रमुख आधार मनुस्मृति को ही माना जाता है तथा वर्तमान समय में भी न्यायालयों में न्याय दिलाने में मनुस्मृति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी मनुस्मृति का प्रभाव रहा है। बालि, स्याम और जावा के विधान मनुस्मृति से साम्यता रखते है। बर्मा का धम्मथट् मनुस्मृति से ही प्रेरित प्रतीत होता है। नेपाल का विधि-विधान, आचार मनुस्मृति का ही अनुकरण करता है। फिलिपीन द्वीप के नये लोकसभा-भवन के सामने उस देश की संस्कृति के निर्माण में आधारभूत योगदान देने वाले चार व्यक्तियों की मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी है जिनमें एक मूर्ति महर्षि मनु की है।
मनुस्मृति सम्पूर्ण मानव जाति को एक अद्भुत देन है, जिसके द्वारा सम्पूर्ण समाज अपने कत्र्तव्याकत्र्तव्य को बोधकर समायोजनात्मक भाव से एक उत्तम समाज का निर्माण करता है। मनु अनुशासित और धर्मानुकूल न्यायसंगत देते है तथा धर्मो रक्षति रक्षितः के उद्घोष के साथ कितने वर्ष बीतने पर भी अपनी सुव्यवस्था के कारण आज भी प्रासंगिक है। अतः मनु एक मानवीय गुणोपेत व्यवस्था का नायक है। मनु और मनुस्मृति के प्रादुर्भाव के कालखण्ड में बांधना आदिम सता के साथ ठीक नहीं लगता है। अतः धाता पूर्वमकल्पयत् के अनुसार ही विचार करना न्यायसंगत शास्त्रसंगत तथा युक्तियुक्त है। एकमात्र मनुस्मृति में ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थों का विशद् रूप से प्रतिपादन किया है इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ में वर्णधर्म, आश्रमधर्म, वर्णाश्रमधर्म, निमित धर्म तथा सामान्य धर्म इस प्रकार सांगोपांग धर्म का विशद रूप से प्रतिपादन किया गया है।
अस्मिन् धर्मोऽखिलेनोक्तो गुणदोषौ च कर्मणाम्।
चतुर्णामपि वर्णानामाचारश्चैव शाश्वतः।।1
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णित अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति अनुपम ग्रंथ है।
Tuesday, 10 January 2017
मनुस्मृति: स्मृतियों में सबसे ऊंचा स्थान मनुस्मृति का
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