Thursday, 26 January 2017

वैतरणी दे पार कर, पूजे सब संसार

वैतरणी दे पार कर, पूजे सब संसार

अंग अंग में देवता, बहे दूध की धार || वैतरणी दे पार कर, पूजे सब संसार || युगों-युगों से गौमाता हमें आश्रय देते हुए हमारा लालन-पालन करती आ रही है हमारी जन्मदात्री माँ तो हमें कुछ ही बरस तक दूध पिला सकी परन्तु यह पयस्विनी तो जन्म से अब तक हमें पय-पान कराती रही हमारी इस नश्वर काया की पुष्टता के पीछे है उसके चारों थन जिस बलवान शरीर पर हमें होता अभिमान वह विकसित होता इस गोमाता के समर्पण से क्योंकि उसने अपने बछ्ड़े का मोह त्यागकर ममता से हमें केवल दूध ही नहीं पिलाया बल्कि हमें अपनाया भी वह गोमाता जिसके हर अंग में बिराजते हैं देवता तैतीस करोड़ जो दिखाती हमें स्वर्ग की राह जिसकी पूंछ पकड़कर पार होते हम भवसागर वह स्वयं में भी है ममता का अथाह सागर बदले में हम उसे क्या दे पाए वही सूखा भूसा वही सीमित चूनी हरे चारे के नाम पर सूखी घास वह तो यह भी सह लेती यदि हम दे पाते उसे थोड़ी सी पुचकार थोड़ा प्यार थोड़ी सी छाँव के साथ अपना सामीप्य और स्नेह उसने तो हमें अपना लिया अपने बछ्ड़े तक उसने किये समर्पित हमारा बोझ उठाने को परन्तु क्या हम उसे अपना पाए जब तक मिला ढूध उसे तभी तक पाला और जब सूखा दूध उसे कौडियों में बेच डाला और ढूंढने लगे दुधारी गाय आखिर हमें दुधारी गाय ही क्यों भाती है क्या गोबर वरदान नहीं क्या गोमूत्र अमृत नहीं वह तो देवी ठहरी पर हममें से कुछ एक मानव हैं या दानव जो मात्र आहार के निमित्त गाय का वध तक कर देते और दुहाई देते कुरीतियों की व्यर्थ तर्क-वितर्क करते अभी समय है सुधर जाएँ सम्मान दें गौ-माता को प्रोत्साहन दें गोपालकों को यदि हम नहीं चेते समय रहते तो शायद इतिहास में हम ही ना रहें | माता वध सम गोकुशी, निंदनीय यह काज | जग में जो ऐसा करे, उसको त्यागौ आज ||

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